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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
मोक्षाग्र द्वारभूतं व्रत चरण फलं, ज्ञेय भाव प्रदीपं, भक्त्या नित्यं प्रपद्ये श्रुत मह मखिलं,
सर्व लोकैक सारम् ।। (३) श्रीजिनेश्वरदेवके मुखसे अर्थरूपमें प्रगटित और गणधरों द्वारा सूत्ररूपमें गुंथे हुए, बारह अंगवाले, विस्तृत, अद्भुत रचनाशैलीवाले, बहुत अर्थों से युक्त, बुद्धिनिधान ऐसे श्रेष्ठ मुनिसमूहसे धारण किये हुए, मोक्षके द्वार समान, व्रत और चारित्ररूपी फलवाले, जानने योग्य पदार्थों को प्रकाशित करनेमें दीपकसमान और समस्त विश्वमें अद्वितीय सारभूत ऐसे समस्त श्रुतका मैं भक्तिपूर्वक अहर्निश आश्रय ग्रहण करता हूँ | (३) ( गाथा पूरी होनेसे 'नमो अरिहंताणं' बोलकर काउस्सग्ग पारना। )
सिद्ध भगवंतोकी स्तुति
सिद्धाणं बुद्धाणं, PAC पार गयाणं परंपर गयाणं। लोअग्ग मुवगयाणं, नमो सया सव्वसिद्धाणं|| (१)
वर्धमान स्वामीको वंदन जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति।
तं देवदेव महिअं, सिरसा वंदे महावीरं।। (२) इक्को वि नमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स।
संसार सागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ।। (३)