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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), तब तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड़ देता हूं)। ( एक नवकारका काउस्सग्ग करके, पारके, ‘स्नातस्या की तीसरी गाथा पंचपरमेष्ठिको नमस्कार - नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, - नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं || १) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है । (१) स्नातस्याकी थोय -३ द्वादशांगी - श्रुतज्ञानकी स्तुति अर्हद्वकत्र प्रसूतं गणधर रचितं, द्वादशांङ्गं विशालं, चित्रं बर्थ युक्तं मुनिगण वृषभै र्धारितं बुद्धिमद्भिः
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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