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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(रागादि व्याकुलता से नहीं) धारणा - उपयोगदृढता से (शून्यचित्त से नहीं), अनुप्रेक्षा - तत्त्वार्थचिंतन से (बिना चिंतन नहीं), मैं कायोत्सर्ग करता हूं।
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काउस्सग्गके १६ आगार (छूट)का वर्णन २ अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं,
- खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए (१)
सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं,
सुहुमेहिं दिहि संचालेहिं, (२) एवमाइ एहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ,
हुज्ज मे काउस्सग्गो (३) जाव अरिहंताणं भगवंताणं,
नमुक्कारेणं न पारेमि (४) ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं,
वोसिरामि (५) श्वास लेना, श्वास छोडना, खाँसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, अधोवायु छूटना, चक्कर आना, पित्तविकार से मूर्छा आना, सूक्ष्म अंग-संचार होना, सूक्ष्म कफ संचार होना, सूक्ष्म दृष्टि-संचार होना, इत्यादि अपवाद के सिवा, मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा