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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
पहली स्तुतिमें पहला नमस्कार सर्व तीर्थंकरोको कीया गया है। जिन्होंने धर्मका प्रचार पवित्र आगमोकेप्रर्वतन से किया है। दुसरी स्तुतिमें श्रुतका महत्व दर्शाकर उसको नमस्कार कीया गया है। तीसरी स्तुतिमें श्रुत ज्ञानके गुणोका विशेष वर्णन कीया गया है। चोथी स्तुतिमें श्रुतको संयमधर्मका पोषक और चारित्र धर्मकी वृद्धि करते हुए दर्शाया है। यह स्तुति पूर्ण करके श्रुत- भगवानका कायोत्सर्ग कीया जाता है। श्रुतस्तवमें जैन शास्त्रोका सांगोपांग स्वरुप, वर्णनात्मक और अद्भुत स्तुति की गई है।पहेली गाथामें सभी सर्वज्ञोकी श्रुततामें ऐकवाक्यता ही है। जरा भी आपसमें विसंवाद रहता नहीं इसलिए उसमें सभी तीर्थंकरोको नमस्कार कीया गया है। दूसरी और तीसरी गाथामें श्रुतज्ञानकी मोह और अज्ञान नाश करनेकी शक्ति दर्शायी गई है।
श्रुत प्रभुकी वंदना करने के लिए कायोत्सर्ग करनेका विधान सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं (१) वंदण वत्तिआओ, पूअण वत्तिआओ,
सक्कार वत्तिआओ सम्माण वत्तिआओ, बोहिलाभ वत्तिआओ,
निरुवसग्ग वत्तिआओ (२) सद्धाओ, मेहाओ, धिई, धारणाओ,
अणुप्पेहाओ, वड्डमाणी,
ठामि काउस्सग्गं (३) मैं कायोत्सर्ग करता हूं श्रुत भगवंतका, (मन-वचन-काय से संपन्न) वंदन हेतु (पुष्पादि से सम्पन्न) पूजन हेतु, (वस्त्रादि से सम्पन्न) सत्कार हेतु, (स्तोत्रादि से सम्पन्न) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग 'किन साधनों' से? तो कि) वड्ढमाणीए-बढती हुई, श्रद्धा-तत्वप्रतीति से (शर्म-बलात्कार से नहीं), मेधा-शास्रप्रज्ञा से (जडता से नहीं), धृति - चित्तसमाधि से