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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
श्री महावीरस्वामी को प्रतिदिन नमस्कार हो, यह अनुपम चतुर्विध संघरूपी तीर्थं श्री महावीर स्वामी से प्रवर्तित है; श्री महावीरस्वामीका तप बहुत उग्र है; श्री महावीरस्वामीमें ज्ञानरूपी लक्ष्मी, धैर्य, कीर्ति और कान्तिका समूह स्थित है, ऐसे हे महावीरस्वामी ! मेरा कल्याण करो | (२९) (श्री जिनेश्वरदेवके चैत्योंको मैं भावपूर्वक नमन करता हूँ ), जो अशाश्वत और शाश्वतरूपमें पृथ्वीतलपर, और भवनपतियोंके श्रेष्ठ निवासस्थान पर स्थित हैं, इस मनुष्य लोकमें मनुष्यो द्वारा कराये हुए हैं और देव तथा राजाओंसे एवं देवराज इन्द्रसे पूजित हैं |(३०)
सर्वेषां वेधसामाद्य, मादिम परमेष्ठिनाम् । देवाधिदेवं सर्वज्ञ, श्री वीरं प्रणिदध्महे || (३१) देवो नेकभवा र्जितोर्जित महापाप प्रदीपानलो, देवः सिद्धिवधू विशालहृदया लंकार हारोपमः ।
देवोष्टा दश दोष सिन्धुर घटा निर्भेद पंचाननो, भव्यानां विदधातु वाञ्छितफल श्री वीतरागो जिनः ।। (३२) सर्व ज्ञाताओंमें श्रेष्ठ, परमेष्ठिओंमें प्रथम स्थानपर विराजित होनेवाले, देवोंके भी देव और सर्वज्ञ ऐसे श्री महावीर स्वामीका हम ध्यान करते हैं । (३१) जो देव, अनेक भवोंमें इकडे किये हुए तीव्र महापापोंको दहन करनेमें अग्नि समान हैं, जो देव सिद्धिरूपी स्त्रीके विशाल वक्षःस्थलको अलंकृत करनेके लिये हैं, वे श्री वीतराग हारसमान जिनेश्वरदेव भव्य-प्राणियोंको इच्छित फल प्रदान करें | (३२)