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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
सुरा सुराधीश सेवितः श्रीमान् । विमल स्त्रास विरहित, स्त्रिभुवन चूडामणि भगवान् || (२८) अपराध किये हुए मनुष्य पर भी अनुकम्पासे मन्द कनिकावाले और कुछ अश्रुसे भीगे हुए श्री महावीर प्रभुके दो नेत्रोसे तुम्हारा कल्याण हो |(२७) अन्य तीर्थंकरोंके प्रभावको जीतनेवाले ; सुरेन्द्रो और असुरन्द्रोसे सेवित, केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे युक्त, अठारह दोषोंसे रहित, सातों प्रकारके भयसे मुक्त और त्रिभुवनके मुकुटमणि ऐसे अरिहंत भगवान् जयको प्राप्त हो रहे हैं | (२८)
वीर : सर्वसुरा सुरेन्द्र महितो वीरं बुधाः संश्रिताः, वीरेणा भिहतः स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः । वीरात्तीर्थ मिदं प्रवृत्त मतुलं, वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्री धृति कीर्ति कांति निचय :
श्री वीर ! भद्रं दिश || (२९) अवनितलगतानां, कृत्रिमा कृत्रिमानां, वर भवन गतानां, दिव्य वैमानिकानाम् |
इह मनुज कृतानां, देव राजार्चिताना,
जिनवर भवनानां भावतोहं नमामि || (३०) श्री महावीरस्वामी सर्व सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंसे पूजित हैं, पण्डितोंने श्री महावीरस्वामीका अच्छा आश्रय लिया है; श्री महावीरस्वामी द्वारा अपने कर्म समूहको नष्ट किया गया है; ऐसे