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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
धर्मोपदेश करते समय जिनेश्वरकी वाणी विश्वके भव्यजनरूपी बगीचेको सींचनेके लिये नालीके झरने के समान है, वे श्री सम्भवनाथ भगवन्तके वचन जयको प्राप्त हो रहे हैं |(५ अनेकान्त मतरूपी समुद्रको पूर्णतया उल्लसित करनेके लिये चन्द्र स्वरूप भगवान् श्रीअभिनन्दन हमें परम आनन्द प्रदान करें। (६)
धुसत् किरीट शाणाग्रो त्तेजितां धिनखावलिः । भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्व भिमतानि वः ।। (७)
पद्मप्रभ प्रभोर्देह भासः पुष्णन्तु वः श्रियम् ।
अंतरंगारि मथने, कोपाटोपादि वारुणा: ।। (८) जिनके चरणकी नख-पंक्तियां देवोंके मुकुटरूपी कसौटीके अग्रभागसे चकचकित हो गयी हैं, वे भगवान् श्री सुमतिनाथ तुम्हें मनोवांछित प्रदान करें |(७) आन्तरिक शत्रुओंका हनन करनेके लिये क्रोधके आवेशसे मानो लाल रंगकी हो गयी हो ऐसी श्री पद्मप्रभ स्वामी के शरीरकी कान्ति तुम्हारी आत्म-लक्ष्मीकी पुष्टी करे | (८)
श्री सुपार्श्व जिनेन्द्राय, महेन्द्र महितांघ्रये | नम श्चतुर्वर्ण संघ, गगना भोग भास्वते || (९)
चंद्रप्रभ प्रभोश्चन्द्र मरीचि निचयो ज्ज्वला | मूर्तिर्मूर्त सितध्यान, निर्मितेव श्रियेस्तु वः ।। (१०) चतुर्विध संघरूपी आकाशमण्डलमें सूर्यसदृश और महा इन्द्रोंसे पूजित चरणोवाले श्री सुपार्श्वनाथ भगवान्को नमस्कार हो |(९)