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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
चन्द्रकिरणोंके समूह जैसी श्वेत और साक्षात् शुक्लध्यान से बनायी हो ऐसी श्री चन्द्रप्रभस्वामीकी शुक्लमूर्ति तुम्हारे लिये आत्म-लक्ष्मीकी वृद्धि करने वाली हो । (१०)
करा मलकवद् विश्वं, कलयन् केवल श्रिया । अचिन्त्य माहात्म्य निधिः, सुविधि र्बोद्ययेस्तु वः || (११)
सत्त्वानां परमानन्द कन्दो भेद नवाम्बुदः । स्याद्वादामृत निःस्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः ।। (१२) जो केवलज्ञानकी सम्पत्तिसे सारे जगत्को हाथमें स्थित आँवलेके समान देख रहे हैं तथा जो कल्पनातीत प्रभावके भण्डार हैं, वे श्री सुविधिनाथ प्रभु तुम्हारे लिये सम्यक्त्वकी प्राप्ति करानेवाले हों। (११) प्राणियोंके परमानन्दरूपी कन्दके अंकुरको प्रकटित करनेके लिये नवीन मेघस्वरूप तथा स्याद्वादरूपी अमृतको बरसानेवाले श्री शीतलनाथ जिनेश्वर आपकी रक्षा करें | (१२)
भव रोगात जन्तूना मग दंकार दर्शनः । निःश्रेयस श्री रमणः, श्रेयांसः श्रेयसेस्तु वः ।। (१३)
विश्वोपकार कीभूत, तीर्थकृत्कर्म निर्मितिः । सुरासुर नरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः ।। (१४) जिनका दर्शन भव-रोगसे पीड़ित जन्तुओंके लिये वैद्यके दर्शन समान है तथा जो निःश्रेयस (मुक्ति) रूपी लक्ष्मीके पति हैं, वे श्री श्रेयांसनाथ तुम्हारे श्रेय-मुक्तिके लिये हों । (१३)