________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
नामा कृति द्रव्यभावैः, पुनितस्त्रि जगज्जनम् |
क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्न र्हतः समुपास्महे || (२) जो सर्व अरिहन्तोंमें स्थित है, जो मोक्ष लक्ष्मीका निवासस्थान है, तथा जो पाताल, मर्त्यलोक और स्वर्गलोक इन तीनों पर सम्पूर्ण प्रभुत्व रखता है, उस अरिहन्त के तत्त्व (आर्हन्त्य) का हम ध्यान करते हैं |(१) जो सर्व क्षेत्रमें और सर्व कालमें नाम, स्थापना, द्रव्य और भावनिक्षेप द्वारा तीनों लोकके प्राणियोंको पवित्र कर रहे हैं, उन अर्हतोंकी हम सम्यग् उपासना करते हैं | (२)
आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम् | आदिमं तीर्थनार्थ च, ऋषभ स्वामिनं स्तुमः ।। (३)
अर्हन्त मजितं विश्व, कमलाकर भास्करम् | अम्लान केवलादर्श, संक्रान्त जगतं स्तुवे || (४) पहले राजा, पहले साधु और पहले तीर्थङ्कर ऐसे श्री ऋषभदेवकी हम स्तुति करते हैं | (३) जगत्के प्राणीरूपी, कमलोंके समूहको विकसित करनेके लिये सूर्य-स्वरूप तथा जिनके केवलज्ञानरूपी दर्पणमें सारा जगत् प्रतिबिम्बित हुआ है, ऐसे पूजनीय श्री अजितनाथ भगवान्की मैं स्तुति करता हूँ I(४) विश्व भव्य जनाराम कुल्या तुल्या जयन्ति ताः । देशना समये वाचः, श्रीसम्भव जगत्पते: ।। (५) अनेकान्त मताम्भोधि समुल्लासन चंद्रमाः । दद्याद मन्द मानन्दं, भगवान भिनन्दनः ।। (६)