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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
देव-गुरुको पंचांग वंदन
इच्छामि खमासमणो ! दिउं जावणिज्जा निसीहियाए, मत्थएण वंदामि (१)
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मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं । (१)
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(जैनधर्ममें आज्ञा बिना कुछ नहीं करते है । इसलिए गुरुसे आदेश लेते है।)
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? 'इच्छं’ (१)
हे भगवंत ! चैत्यवंदन करूं ? आज्ञा मान्य है । (9)
सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्प वृक्षोपमानः,
भव जल निधि पोतः सर्व संपत्ति हेतु:, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः ॥ (१)
सकलार्हत चैत्यवंदन
वर्तमान चोबीशी परमात्माकी भाववाही स्तवना
सकलार्हत् प्रतिष्ठान
मधिष्ठानं शिवश्रियः ।
भूर्भुव: स्वस्त्रयी शान, मार्हन्त्यं प्रणिदध्महे II (9)