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ते सर्व सहे प्राणजाता पिण मार्ग थो न चले रोस नाणे यथा सावत्थोने विषे जितशत्रु, राजा धारिणी राणी तेहनो पुत्र स्कंद कुमार सर्वशास्त्र प्रवीण पंडित गुण करौ प्रवर्ते पुत्री पुरंदर यशा दंडकारण्य देशनो धणी कुम्भकार राजाने परणावी एकदा कुम्भकार राजानी पालिक नामा पुरोहित सावत्थीइ नगरी आव्या जितशत्रुनी सभाइ गुष्टि करतां पालक मन्त्री नास्ति मत थापे ते स्कन्द कुमार शास्त्रनी युक्त करि नास्तीकमत उथाप्यो सभा समक्ष ते पालकने विलखो कोधी लोके हसौ तो आपणे नगरे गयो तेहवे पाछिलि सावस्थिडू स्वान्द कुमार पांचसे राजपुचने परिवार श्रीमुनि सुव्रत पासे दिख्या लिधौ गणधर पदवी पाम्यो एहवे केतले दिवसे मुनि सुव्रत तीर्थकर पूच्छो भगवन् दंडकारख देश हु विहार करी नाति बहीन छ तेहने प्रतिबोध देवा भणी मन चाल्यो छे तुम्हे आग्यायो तिवारे मुनि सुव्रत खामौ कहे तिहां तुमने मरणांत उपसर्ग के तु परिसह नही सहे अने यारसेनिनाणु आराधिक के ते सांभली भवितव्यताना योग थौ दंडकारण्ये वंदाविवा
उद्याने जई ऊतखो तेहवे ते पालक पुरोहित पाछली रौसना वस थी स्कन्द परिवार सहित हणवा बांछतो रात्रि तेणे उद्याने छांना हथीयार 8 भूभिमाहि मांतिन पछे प्रभाते भावी राजानेजणाव्यी जे तुमारी साली संयम भांजी पांच से जोध सहित वनमाहिं पाव्यो छे तुमने विणासो राज लेसो
प्रपञ्च एहवो मे पुच्च्चो के जेन मानो तो तुमने पांचसे हथीयार छाना वाडौ मांहि संताद्या के ते देखाई तिहां थौ राजानो मन ते भंभे ने वनमांहि तेडी हथीयार देखाड्या महात्मा अपरि रौस चब्ये थके ते पांच से पालकने भोलाव्या तिणे अभव्ये नगर माहि घाणी मंडावी रौस नावस थी ऋषोखरां ने घांणी मांहि घालौने निरदय पणे पौलवा लागो ते साधु क्षमा करतां केवल पांमी मोक्ष पोहता पर्छ गुरुने विनास्यों रौस सहित करौ भुवनपति मांहि अग्निकुमार देवता हुओ ओधो मुहपती रक्त खरद्या समलौई पुरंदरयशा आगे नाख्या भाइनी मरण जाण्यो एपापी पालक नाकाम के हिवे
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ सं० उ०४१ मा भाग