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उ भाषा अ०२ ८२
तहने सभा धको कढाव्यो तिवारे वररुचि घरे प्रावी खिसाणो धको वौस भक्षण करी मृत याम्यो अथ हिवे संभूत विजय प्राचार्य पीताना थूलभद्रादि ४ शिष्य लेदू पाडली पुरमा चतुर्मासरहवान आव्या अनुक्रमे आचार्य ते नगरमा चार शिष्यने चार स्थानके आज्ञा पापौने पूछे आपणी इच्छा होवे ते कहो तिवार एक शिष्य कहे स्वामि चार मास चार आहारनी पञ्चक्खाण करि दृष्टि विष सर्पना बिल पर रहौस बोजो कहे कूआना भार व? रहीस त्रीजी कह सिंह गुफाने मुखे रहौस थूलभद्र कहे खामि ई वेश्याने घर चोमासे रह स्यु तिवारे गुरु इच्छा प्रमाणे प्राग्या आपी ले गया थूलभद्र कोशानेबारे आव्या कोश्याई घणे हर्षे करौ मोतीडे वधावी मन्दिरमा राखी थूलभद्र प्रथम प्रतिज्ञा करी जे मुझ थकी साठा तीन हाय वेगली रहौने ताहरा मन माने ते हाव भाव कटाक्ष कौजे वैश्या विचार एक वार मंदिरमां तो आवे पछे जोस्य इम करता तिहां रह्या तिवार थूलभद्रने नाना प्रकारना काम जागवाना सरस आहार करावे राग रंग नाच नव नवा कौतुक कर काम बाणकटाक्ष चलावे पण थूलभद्र स्वामि मेरु जिम अचल ते न चले ध्रुव ठामन छंडे ते छांडे समुद्र मर्यादा न मुके पण थूलभद्र मनवचन कायाई नौकरण भाव शुई चारित्र पाले इम करता चार मास वितौत थया पारणे
च्यारे गुरुभाइ समकाले गुरुने वांद्या तिवारी वीण्य शौथने गुरे का प्रावो दुक्कर कारक अने थूलभद्रने विण्य वार दुक्कर कारक कहे तिवारे बौण्यशिष्य ॐ कह स्वामि एवडो अंतर किम जे कौश्याने घरे चित्रसालामा रह सरस आहार नित्य कर किवार उपवास न कखो अने अमेतो धारे मास
उपवास कौधा विषम थानके रहवो क्षिणमात्र निद्रा आवे ताल चूके तो कूत्रामा पडे बीजो कहे सर्पने वौले रहवो इम सिंह गुफाने विषे एहवा कठिन परीसह सह्या तिवारी गुरु कहे ए परिसह सोहिला पण थूलभद्र सम वड कोइ नहीं जौणे जे कोश्या संघाते साढी बार कोडि सोनइ याविलश्या तहने घरमा रही पोताने शील राख्यो तेहने प्रतिबोधौ धाविका कौधौ एमहा मोटा ऋषि चौरासौ चोवीसौ लगे नाम रहस्य इम करता एक शिष्य
FA:08GRXAMRARRRRRRRRORARAK
राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा० सं० उ०४१ मा भाग