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उ.भाषा
अ.२
कामाजन गुरु पाशे दीक्षालेई लोचकरी राय पाशे आया राय देखी कहे आस्य को तिवारें स्थूलभद्र कहे राय कहण मुणो मै तुमनें कही गयोह तोजे सोची पाउ ते सोची पायी संसारतो उद्विग्नत्वप्रशादेन मम पितामृत तौवार माहरी पण एहवौ गत थास्ये ते माटे पामे स्वयमेव दौख्या लोधी इम राजाने समझावौ वौहार कर इम करता कोई नगरमा संभूत विजय सूरीनो शिष्य थयो अथ एकदा भालमोहे सौरीयो कोश्याने घरे आयो कोश्याने सर्ववृत्तान्त कहे पिता मरणं थुलभद्रा दीक्षा ग्रहणं वररुचि भट्टस्य प्रपञ्चकं कथितं वलि वररुचि ताहरी भग्नी स'रक्त के ते माटे इम करो के तेमदौरापान कर तिम करो ए काम तुम थोथाए वररुचिना प्रसादे पिता मरण पाम्यो थूलभद्र दीक्षा लौधौते जाणवु इम शिखा मण देई घरे आव्यो तौवार ते वेश्याइ उपवेश्याने शिक्षा देई वररुचिने मदिराने विषे रत कराव्यो इम करतां सोरीयो राजानो मन्त्रीसर के अने अनुक्रमे वररुचि मदिरा पान करे ने वृतांत सौरीयाने जणाव्यो एतले एक समे राज सभा पूरी राजा बैठा थका सकडालने संभारे एहवो गुणवान बुद्धि वान् सूरवीर शास्त्रवेत्ता नाहक मरणपायो एस्यो कारण तीवार सोरीयो कहे महाराज राय प्रपञ्च जाणे नहीं राय कहे एहवो कोण प्रपञ्ची जीणे सकडालने हणाव्यो ते कोण के ते कहो तिवार सरौए वररुचोनो वृत्तांत गाथादिक सर्व प्रकाशे वली कहे महाराय ते मदिरा पीए के मांस भक्षण करे के एहवो वात सांभलो राय वररुचिने तेडावे अनुक्रमे राय कहे अहो वररुचि तु केहवो ब्राह्मण मद्य मांसनो लोलपी ते कहे राय एहवो कोम कहीए तिवारे सिरियो कहे महाराज एहने वमन करावीए तिवार राय वैदने आना आपो वमन करावो वैद मदन फलनी चूर्ण आपो वमन कराव्यो वमन करतां मदिरागन्ध प्रसीद्ध नीकली सभा समक्ष स्वजातिय विप्रादिक समस्त वमन देखी तेहने नौंदे राजा कोपानलथई क्रोधे करी कह रे पापिष्ट ते मुझने ठगी वीत्त लोधी प्रपञ्च करी मन्त्री सकडालने हणाव्या तिवार घणो खिष्ट थयो मन्त्री राजानी कोप उपसमावी
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राय धनपतसिंह बाहादुर का आ० सं० उ. ४१ मा भाग