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उ भाषा अ०२
प्रकारे जाणिने छांडे सु० रूडो आचयो त० तेणे यतौइ सा. चारित्र १५ ए. एणी पर पूर्वे सौनो स्वरूप कहे छ एमजाणिने मे० बुद्धिवंत हुइ पं० मुक्ति गांमी पुरुषने कादम सरीखी खता रहिवानी कारण इ. ए स्त्री नो० ते स्त्रीसंघात प्रवर्तीने वि० संयम जीवतव्यने हणे नहि च. पाचरे धर्म अनुष्ठान अत्त० संसार थी आमानो गे० तारण हार हुइ १७ अथ स्त्रीपरिसह दृष्टांत गाथा १६१७ अथ पाडल पुर नामा नगरने विषे नवमी नंद राजानी राज्य धुरंधर अमात्य शकड़ाल नामा मंत्री सर तेहने के पुत्र थूल भद्र वृद्ध पुत्र तेली लावी लासने अर्थे ते नगरने विषे वैश्याने घर यथेष्ट द्रव्य से रहे सुख विलसे संसारना अने पिरीयो लघुपुत्र ते राजानि सेवामा रहे एहवा समयनें विषे ते नगरमा वररुचि नामा भट्ट ते नंद राजाना १०८ दिन प्रते नवा कवित वणवे राजा तेहन बहुद्रव्य आप तिवारी कडाल मनोसर नौरर्थक द्रव्य उडावे मन्त्री सर मिथ्यावादीने मानेन ही नवाकाव्य राजानीप्रशंसासां भली प्रशंसा न कर मन्त्रिप्रशंसा विनाराजान तेहने किच्चित् मात्र आप्यु तिवारे वररुचिभमन्त्रीनीभार्या प्रते अमृतवाणी कहे मन्त्री सर मुझ उपसर कृपा नथी राखता तिवारी स्त्री भरिने कही समझायोतिवार मन्त्रीसर मिथ्यावादीमे माने नहीं स्त्रीना वचन थी वातमानी काव्यनी प्रशंसा करौ तिवारे राजा नित्य नवा काय सांभले १०८ दिनार दिन प्रते पापे इम केतला इक दिवस गया बहु द्रव्य वररुचिने थयो तिवारे ते
मोहवनादि कार्य करें तिवारी मन्त्री मनमा विचार आमिष्यावादि मिथ्यात्व कर्म पापारंभ करे द्रव्य बकौ तदा तिणे राजाने वाखो महाराजाए भट्टजी ४ रण काव्य कहे पारका चोरना काव्य कहे छ तिवारे राजा कहे किम जाणौए मन्त्री कह महाराज माहरी सात पुत्ची के तेहने पूछी देखो तिवार
राजामानौ प्रात समे सभामा राजा पर हेंच बंधावी साते पुचीने बेसाडी ते पुची केहवी बुद्धिवंत प्रथम पुची १ एक वेला नवीन श्लोक काव्यसांभल तांते कहे बीजो बे वेला चौजी तीन वेला सांभलता कहे इम साते पुत्ची कहे एहवे सभामा वररुचि भावी नवा काव्य कह्या तिवारे ते काव्य सांभली
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राध धनपतसिंह बाहादुर का प्रा० सं० उ. ४ १ मा भाग