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________________ स्वसचित्ता माता तमेवमाह वम भव्यकुलजालस्य तव केयमऽवस्था स प्राह मातचारि पालयितुमहं न शक्नोमि साप्राह तर्हि अनशनं कुरु माह वचसा स सप्तथिलायां सुखा पादोपनमनञ्चकार सम्यग् उष्णपरीषहं विषय समाधिभाग् देवत्वं प्राप्तवान् एवं अन्य रपि साधुभिरुष्ण परोषहः सोढव्यः ततो पौषकालादनन्तरं वर्षाकालः समागच्छति वर्षाकाले दंशमशकादय उत्पश्यन्ते तैय पौडित: सन् तत्परौषहः सोढव्यः पुढीय दंस मसएहिंसमरेव महामुशी नागो सङ्गामसौसे वा सूरो अभिहणे परं १० न सन्तसे न वारिज्जा मपि न पोसए उहवे न हणे पाणे भुञ्चन्ते गायं नो परिसिंचिज्जा नबीएज्जाय अप्ययं ॥६॥ पुट्ठोय दंस मसएहिं समरेव महामुणी। नागो संगाम सौसेवा सूरो अभि हणे परं ॥१०॥ पसंतसे अवारज्जा मण पि नपोसए। उवह नहणे पाण मुंजते मंससोणिय ॥११॥ माहि उष्णपरीसह सही मन संबरी जिमतापने जोगे मांखण विघराइ तिमतनविघराणी परिणाम शुद्धयी काल करौ देवताही जिमर्तणे अनिके पहिलो चूकोति मन कर अने जिमछे हडे कामसायो मन ठाम राख्यो तिम करवो इति उष्ण परिसह उपर अर्हवक दृष्टान्य संपूर्णम् अश्वाये सूत्र माह १ पु० फरस्थो पौद्यो द. डांसमसे करीने स० तेडा सममाने आपणा आमा सरोषा जले खुवे म० मोटी साधुजी ना. जिम हाथी संग्राम या ते थक अणणौड मिली हुई एह वा संग्रामने विषे सू. जिम सूरहाथी प. अशी इजीपे ५० वेरौने १० न० डांसमसाने वासवे नही म० मवारे अंतरा यन कर चटको देता म. मने करीने पिण न न कर देष उ. उदासौन पणाने भावे करीन इणे नही पा• जीवने भु० खाता थकां मं• पो तानी मांस अने लोही ११ अब दंसमसकदृष्टान्त चंपानगरोइ' जितशत्रु राजानो पुत्र श्रमणभद्र श्रीधर्मघोष सरिकने प्रतिबोध पांमी दौख्यालोधी केतलें राय धनपतसिंह बाहादुर का पा• सं० उ. ४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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