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________________ भाषा प्रावी तेणे ताप करी धाणौनी परमान तु सरिर प्रमेवे षादि पाखो हतो आवौ सानागोखठलिछांहडौये वीसामो लोधी उभी रह्यो तेहवे व्यवहारी यानी स्त्रौ गोखमै झांखो वोलाव्यो अहो सौभाग्य आपनी घरि पवित्र करो तुमे भिक्षा लो इम कहिने तेही मोदक लेइ आवी पौण रूप देख मोह पांमी नेत्रना कटाक्ष लगावौ हाव भाव करी काम वचन कहिवा लागौ माहरे भाग्ये तुमारी आगमन थयो भने प्रो धन तन मन ओवरए शय्या सर्व तुमारी के हुँ पिण तुमने वांछु छु अनाथ नाथ धाओ ते मधुर वचन सांभलो चारित्र वर्ष थी तिहां रह्यो वलो विचार हिवडांती रहीये वलीगढ पण *दीचा पाली से ते उष्ण पाचोनो पौद्यो तिहा रह्यो षडऋतुना भीग भोगवे के गणेश गुरु पासे घावो कहे अर्हवक आव्यो त्यारे कहे नथी आयी साधा जो यो पिण न लाधी भद्रा माताइ वात सांभलो जोतां न लाधी तेणे मोह गहिली थइ भमे मुखे अहवकर तुकिहां है इम करती विचर वालक कहे * ए अर्हवक ए पहनक तिहां थी दोडे वस्त्र अचेतन पणे भमता वारमे वरमे तेथे मेरीये भद्रा नौकली हजारा वालक पूछे फौरे के तिवार वालकने 8 सौर भद्रा गहिलो गलियां माहि दौठो मुख अर्हनकर तुकिहां के इम करता एहयो शब्द गोखे सांभली विलाप करती देखौने भद्राने अोलखी हिवे चितवा लागोसहौए माहरौ माता के मे अभागी माताने दुखणौ कोधी अने मे नर्कनो पाऊखो उपाय? इम चितवी गोख थकी उतरीने माताने वोलाबी ई अहवक एहको सांभली हौया वारिवापिने मन ठामि आव्यो पुत्र चादर मोढवा दौधौ स्वस्थ चित्त थइ मन संतोष उपनो माताई वेटो पुल्यो हे पुत्र अाज लगे किहाँ हुतो तिवारी तेणे पहनके पापणपे गोखेउभौ स्त्रो भोगवीते माताने सर्वस्व रूप कह्यो तिवारे पीछे माताई ॐ पुत्रने को है बच्छ चारित्र नखंडए भोग मुकीएकांत चारित्र पाला तिवारी तेणे पुत्र को मे पापीये चारित्रनपले पिण कही तो प्रण सण उचक तेहवे मावोली बच्छ इमकरि पिच पाप मत करि ए मातानो वचन सांभली हुते वैराग्य थके तप्त मौला उपरि पादोपगमन अणसण लेई क्षण एक 000-00-0RRRRRRRRRRRRXXXXXX राय धनपतसिंह बाहादुर का आ सं० उ० ४१ मा. भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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