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________________ .भाधा ३ १४५ . १ मा भाग एहवा कौतुक आपणा कुटंब सघलाने देखाडु तो रुडों एहवी चिंतवो गृहमांहि जई सकल परिवार प्रते कयो अरे आवोज़ि तुम्हने अदृष्ट पूर्वक एक आश्चर्य देखाडु एहवी सांभलौ काछिवानिकोड चालि द्रह माहि अत्यंत कोलाहल करौ चोभ जपनो तेतले से वाल उपरि वस्यो छिद्रमुद्राणो काछिवो उरहो परहो भम्यो परं ते छिद्र नलह जोईर थाको विलखी थयो परं ते वले वौजी काछिवी वोलयो तुम भूला कहो तुम्हने चित्त भ्रम थयो कोई कहे सतरोया वहतरोया एहवाज हुवे एहवा कुटंबना वचन सांभलो चित्तने विर्ष पश्चात्ताप करतो विचार हु साचो छतो एण कूडो कौधो हि कोइ ते उपाय के जिण ए पश्चात्ताप मिटे जैबलि एहवी आश्चर्य देख अने एहने एह देखाडु तो साची धाउ' एहवो जाणि वारंवार तिहां आवि जीवे पर किहां थो देखे एह वाह्यदृष्टांत दुर्लभ कह्यो हिवे मनुष्य भव उपरि देखाडौयेछे जिमए द्रह तिमएसंसार जिम पांणि तिम जन्म मरण जिम आठ पुडो सेवाल तिम आठ कर्म जिमका छवी तिम ए संसारी जीव जिम वृक्ष तिम श्रीगुरु जिम फल तिम गुरुना वचन जे छिद्र ते कर्म विवर तेण जिम चंद्र प्रदर्शन जिम सकल सामग्री सहित मनुष्य जन्मनी लहिवो जिम तेणे काविहास्त्री वलवे दुर्लभ कौधो कदाचि वली ते पामे परं मनुष्य जनम प्रमादे हाथी गाठो दुर्लभ के ए सहु मिलौ ८ दृष्टांत धया हिवे नवमो दृष्टान्त झसरनो कहे के असरने समिल दृष्टांत ते किम लोक मांहि असंख्या तस मुद्र के ते माहि सर्व थो मोटो स्वयंभू रमण समुद्र के काई एक झूसर धको समिल जूई करौ पूर्व समुद्र मांहि असर घाले पश्चिम समुद्र समिलते समौलवली * तिणजभू सरे तिणेज छिद्र अावोवेसे दीहिलो दृष्टांत ते समिल झूसर एकठा किम मिले तिवारी गुरु कह कदादि कहीलनौठेली वायुने पूर आवतौर * कदाचि झसरा स्यू' समिले परं जे मनुष्यनी भवलहि प्रमाद वसे पालिनी गम्या वली लहतां दीहिलो एतले नव दृष्टांत थया ॥६॥ हिवे १. मी परम 8 मायनो दृष्टांत कहोये के ने किम जिम कोई सोल जाति रव एकठा करी तेहनी एक मोटी स्तंभ अतिविग्यान सहित करी तेस्तंभ दयी दिशि उद्योत राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा.सं १८
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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