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________________ अ०३ उ भाषा * पुत्र माहरि पुत्रौई मण्यो ते साधमेते राजाई ते मान्यो तेणें कुमरे तत्काल राधावेधने स्तम्भजई हेठि भाटी कडा हिचढावी तिहां तेलऊकलती भ्रमरावर्त भमती करी ते तिहां ऊभी रहौने तेलमाहि प्रति विंव आठचक्र स्तंभ पूतलौनौ रतौ दृष्टि उपहरौ मुष्टि धनुखवाण चढावी आठचक्र विचाले करौने काष्ठनो पूतलौना वामी नेत्र तेहनौको कौवांधौ तेनिहति कन्या परणौ राजा प्रधान जपरि राजी इवो जिम सूरेंद्र दत्त कुमार एक वार राधावेवसाध्यो परवी जौवारे न साधे एहवा एदृष्टांत जाणौ वाह्य देखाची हिवे अंतरंग कहेछ जिम ए मंडपति मए संसार जिम स्तंभ उपरि काठनी पूतली तिम मनुष्य जन्म विषे तत्व बुधि जे आठचक्रत आठ कर्म जे सृष्टि संहारते शभा शुभ जाणवा जेहे ठिकलर तोतेलते कषायादिक प्रमाद ते मांहि वर्ततो निरती दृष्टौ ऊपहरी मुष्टौते शुभध्यान तेणें करी पाठकर्मने विवरे थयेहु ते मनुष्य जन्मने विषे तत्व बुद्धि पामते पूतलौनीकी कौवे धेएपुण दोहिलो एकवार कदाचिलही पा लिहारवेता वो जौवारलहतां दुर्लभछे एसातमी दृष्टांत धयो ५ हिवे आठमी कूर्मनो दृष्टांत कहेछ जिम कोई एक माटो द्रह अगाधजल पूरि घणे विस्तारछे तेह अपरि आठ सेवा लना पुड वस्याले तेह माहि अनेक जलचर जीव मच्छ कच्छप * पाटौ नक्र चक्र गाहक मुसमार प्रमुख जौवना घण कुल वसैले तिहति ट्रहने पासे एक वौलनी वृक्षर्छ तेहने विषे अनेक फल परिपक्वछे तेमाहिलोएक फल टुटौने द्रह मांहि पयो आठसेवालना पुड भेदाणा माटोछिद्र धयो तेतले एक काछिवी गरढो कर्मने योग भमतोर तिण * ठिकाणे आव्यो तिहां अदृष्टपूर्वक छिद्र दौठो देखिनेइसोचितवौवा लागी एस्युंदीसेछे आज लगए दौसती नही इम जांणि तिहां मूखकाढी जाइ वालागी इणे अवसर प्रासाजी पूर्णमानी राबिछे तिहां सालेकला संपूर्ण चन्द्रमा ग्रहगण नक्षत्र ताराएमंडित निर्मला अमृतश्चावी नयनानन्द कारी जगत्जन तापहारी एहवा दौठो देखिने मनहाहि अत्यन्त आश्चर्य पूरि थयो चिन्तविवा लागी मोठी जे मोठी जे पांचे दौठो इण कारण राय धनपतसिंह बाहादुर का पा सं.उ. ४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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