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उ० भाषा बात परंजीवितव्यना संदेह थयो एहंवो देखो राजा बंधन यो कुडाव्यो पहिराष्यो वस्त्र तिवारे देवदत्ताइ कछु' अचल मूल देव राजा श्रापणी वाचा थको उरण थयेोर्छ' तिवारेना बोल तुम्हे सांभारो देवदत्ता नाघरसांहि तुम्हे इम का जिम तुम्हने मूंकु कु' तिम तुमुकने मूकीजीए प्रस्ताव जाणिज्यो तेह' देवदत्ताएमूलदेवद्र इम सांभली पगे लागौ खमाव्यो राजाइ सदांण मूको विसज्यों ते कुशलि आपले घर गयो ते ब्राह्मण निष्ण शर्म मूल देवराजा हओ सांभली तिहां आविने मिलो तेहने एक गांम देव अदृष्ट सेवक करो मोकलगे इस प्रताप दिनकर सरौखो दीपती राजा तिणकापडौद्र' सांभली पछीताव्यो में चंद्रमारा खनरोटलामांहि अलिनो गम्यो मूल देवने इस परिफलो जे बलौहिवे चंद्रमारी स्वप्न देख' मूल देवनीपरि सफल करु इसो जाणि रात्रि चिंतवीर सूये वायरी आहारला परं स्वप्ने चंद्रमाकि मदेखे ए दृष्ठांत दोहिला तिवारे गुरु कहे कदा चिचंद्रमानो स्वप्न हारव्यो वलौ लहे परं मनुष्यजन्म आलिनो गम्बो प्रमादवसे लहतां दुर्लभ एतले दृष्टांत थया ६ हिवे ७मो चक्रनो दृष्टांत कहेको इन्द्रपुर नगरमें' इन्द्रराजा तेहने २२ बेटा तेहवे राजाइ मन्त्रौनी पुत्री परणौ तेहने पुत्र हो तेहनो सुरेन्द्र दत्त नाम दौधो एकदा कोइ वचन छलि राजाइ मन्त्रोनी पेटो छोडौ पौहर रहे मन्त्रीवर आपण वेटीनो बेटो भणायो सास्त्रकलाइ पारंगांमी थयो तेहवे मथुरा नगरौये राजा जित शत्रु तेहनोवेटोनोवृत्तिकन्या तेंद्रम कहे जे कोई राजा राधावेध साधे तिका परण ते तिहां जितशत्रु राजाइ राधावेधमंडाव्यो इम एक मंडप मंडायो मोटो तिहां एक मोटो स्तंभ रापीते स्तंभने मस्तकें एक काष्टनी पूतली मांडीने तेहने तिखे आठ चक्र चार चक्र सृष्टि फिरतां च्यार चक्र संहारि फिरता एहवे मिलियंत्रनो उपाय करो माचारख्यांने तिहां देस २ ना राजकुमार तेडाव्या तिवारी इन्द्रपुरनो राजा आपणा २२ बेटा सहित आव्यो मन्त्री पिस वेटीनो बेटा संघाते भाख्यो सर्व राजा राधावेध साधे पिणकोण होथोन सधाइ तिवारी मन्त्रो को खांमी तुम्हारी
अ०३
१४३
PURRARENES
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राय धनपतसिंह वाहादुर का श्र०सं० उ० ४१ मा भाग