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________________ है वोजौ अक्काहतो तेणे कह्यो अहो अचल जेणे गुफा केसरि वस्यो करिकुल केरो काल आलसियाल तिहां करे सिंह नही हते स्याल ॥१॥ इस कारण उभाषा जिहां तु आवे विहां दरिद्री एक मूलदेव पावे तेसाथै सहित रमे खेले ए ताहरी समर्थ पणो केहो अन्हे देवदत्ता वारी पर गुण गहलोछती मानाइ * नही इसी सांभली अचल व्यवहारियो मनमांहि रोसावि एकदा देवदत्ताने घरि आवी केतली एकवार रहो जाते इशी कयो हु गामांतरे सिधावी आवु' कुं दिन पांच सात लागि स्य इसी कही अचल नौकल्यो ते तले मूलदेव तेहने घरि आव्यो निश्चंत पणे शास्त्रनी गोष्ठि विनोद करिवा लागोदेवदत्ताई पिण कहो अचल व्यवहारो यो गामन्तर सिधाव्यो के इसी जाणि निर्भय छतो तेहने घर रात्रि ने समे रह्यो जेतले प्रहर एक रात्रि बउली ते तले केत * लाइक पुरुष सहित हार आयो एहवी कहो कि वाडि उघाडी इम सांभली देवदत्ता ते मूल देवने कह्यो तुम्ह ढोलीया हेठली केतली कवेला रही जेतले व्यवहारी यो रहां आवी जाइ पछे नौकल ज्यो इम को हुते पत्यक नीचली लुकी रहा. एहवी अवसर उलख्थी यतः तम एव हि जानाति समयं ना O परो जनः दोपशत्रु दये जावे तममाश्रित्य तिष्ठति १ तेतले असल मांहि आयी वली अकाई भेद सर्व जणव्यो ते आणी पलाज उपरि आवि बैठी देवदत्ताते आगलो उभी रहौ तेतले व्यवहारौये का अम्हे गांम भणी चाला हुता परं शकुन एहवो थयोतिण पाछा वला हिवे ते शकुननी उपद्रव उता रिवा भणी काई उपाय कौधो जाइये तिवारे देवदत्ताई का स्वामौ उपाय जाणो ते करो तिवार श्रेष्ठि कन्यो एकहांडिउन्ही पाणि करो त्रांन* * कोजस्ये तत्काल ते करी आण्यो तिवारी तेणे कह्यो पलाजपरि वैशी खान कोज स्यै स्वामी ए पलाक कांविणासो बेष्ठि कह्यो पलाङ्क घणा करावी *देस्य इम कही तिहाज बैठी हांडी माथे घालवामांडी तेथिपाणी मूल देव ऊपरि पडिवालागी पक्के कलतीर पाणी पलाश ऊपरि रेडवा लागी ते जिम मूल देवने शरीर लागे तिमर आधी पाछी था ती जाणी श्रेष्ठि कही अरै पलाश हेठलि स्य के कूतरी अथवा बीजा कोई तेतले नौचली जी राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा०सं० उ. ४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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