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उ.भाषा:
अ०३
वोजान निमित्रा भोजन दक्षिणा दोधो परंजे रस सूर्यपाकरसवती जौमतां हुवो तेहने अंतसमे भागि रसनऊपनी सांमुही पश्चात्तापि पद्यी सूर्यषाक रसवती वली किहां लाभस्य वलो चक्रवर्तिने घरवारोकदे आविस्ये एहवी विमासी एकेके दिन घणे घरे जीमतां दक्षिणा लेता छ खण्डपुरो करौ वली चक्रवर्तिने घर सूर्यपाक रसवती जिमवा लहे इम संभवे तिवारी शिष्य कहे हे भगवन् एगाढा दुर्लभ दीसे के तिवारे श्रीगुरु कहे ए दृष्टान्त मनुष्यनाभव लहिवा ऊपरि के जेहवो सूर्यपाक रसवतीनी भोजन तेहवो मनुष्य जन्म कदाचितेव्राह्मण भोजन पावे पर मनुष्य नो भव हारव्यी पामता दुर्लभ हे इति पहिलो दृष्टांत ॥१॥ अथ द्वितीय पासक दृष्टांत । पाडलीपुर नगरि राजा नन्दराज्य पाले तेहने वारे एक ग्राम एक ब्राह्मण वसे ते श्रावक वार व्रत पाले तेहने धरै पुत्र जायो ते दांत सहित देखि माताने अचरोज अपनी तिवार निमितिये पृल्यो एस्य' कारण के निमितिइ कह्यो ए राजा होस्य माता पिताइ चिंतव्यो ए वाप डी जीव राज भोगवी रखे दुर्गति जावे एहवी जाणि कुचला दांत वालकना घसोने जताखा वलि निमितिये ने कह्यो अम्हे बालकना दांत घस्था तिवारी निमितीद्र कह्यो हि विवार राजा हुस्य नाममात्र राजा सर्वमुद्रा व्यापारी एह जहुस्थे इसी सांभली महोच्छव करौने चाणक्य इसी नामदिधी ते पुत्रपाली मोटीकोधी अवसर जांणी पंडित समीप भणाय्यो सर्वकला पारंगामौ ही भला ब्राह्मणनौ पुत्रौ परणावी विशेषे ज्योतष शास्त्रने विषे निपुणपणथयो घणो भाव भेद लहे एकदा नंदराजाने पाट नंदराज्यने विषेथापिवा भणी जम्न वेलाई सिंहासण मांधी जतले राज्यनीवेला थई ज्योतिषी हिण बेला चूका चाण क्य निरसोवेला जाणो मूलगे सिंहासनबैठोतितरे राजपुरुषे देखि कडं अरे सिंहासननेविष पहिलो भिख्या चर वैठो त ऊठाडीवो जो आसण मांडो तेतले चाणक्ये पावौ तिण पासन विषे पाणीपात्र मूक्यो अत्र में पानीयपात्र स्थास्यति ते पिण आणौत्रीजी माद्यो तिहाँ अत्रमै स्थास्थति मकहते दंड
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ सं० उ० ४१ मा भाग
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