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खागत अभ्युत्थानादि घणु कोयो समाधि पूछो भोजन कौया अनंतर स्त्रो पूछौ राजा ब्रह्मदत्त सन्तुष्ट हुत्री के तेह समीप स्यं मांगीये तिवारे स्त्रौर स भाषा:
जाण्यो ए देश भण्डारनो धणी थास्यें तो मुझने छांडी परिषस्ये जे भणौ कयो प्रथम महिला प्रथम घर घोडा चाकरडांह जवमाणस ठाकुर थयो तव १३१ * विरचे बिहु जणांह ।१। इसो जाणौ स्त्रौई भरतार प्रत संवेदीया वाने कब्यो स्वामी आपण ब्राह्मणवां जे घणो देशभंडारादिक मांग स्यो ती ब्राह्मण
क्रिया थी भृष्ट हुस्ये जे भणौ कर्जा के कृषि वाणिज्य गो रक्षा राजसेवा चिकित्सितं यत: अंजलिने अहिनाण नौरन देखे मौठतो जिम पाणो तिम प्राण जतन करता जाइस्य १ रेजोवडा अयाण जां जौवे तां धर्म करौ उडवि जास्ये प्राण तडके लागे वेह जिम २ इम जाणौ धन ध्यान्यनौ तृष्णा छांडीये जे घणा सोना रूपा रनमुक्ताफल मेलौये ते पुण संघात कोई चाले नहीं जे मणिनी कोडि धान्य एकठा करे तो पिण भोगवे जसेर आवे जे घणा मंदिर आवास करावे तो पुणभोगमंचक प्रमाण भूमि प्राये जो एतले घण परिग्रहे स्थो कार्य के सर्व छहडे मूको जावी इण कारण विप्राने दक्षिणा सहित भोजन मांगिवानी कार्य के इम स्विद् ग्राहाणसंवेग दीपाव्यो व्राह्मण अंतरण भावमी अजाण मुग्धपिण तेण वचने राची ततलीज़ प्रमाण करो ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति समीप आवी जेतली स्त्रोई कह्यो हुँतो तेतली माग्यो चक्रवर्ति कहे एस्य माग्यो घणु कान मांगे ब्राह्मण वलतो कधो माहरे घणु' स्य' करवो के मुझने जेतलो तुम्हारी आज्ञा वते तेतला मारे घरे एकको भोजन अम्ह विधु' स्त्रीभरतारने एकेको दीनार दक्षिणा अपावो एतले कहे छते चक्रवर्ति चिन्तयो जेहने जेतलो प्राप्तव्य होइ तेतलोजसं पजे अधिको न घावे जिम कुंभतलाव माहि घालीये तो पुणप्रमाणोपेत पाणी ये अथवा समुद्र माहि पुण घालिये तो ते तली पाणी ले परं प्रधिको लेई न सके तिम एवापडी ब्राह्मण अधिको लेई न सके इसी जाणी तेहनी वचन प्रमाण करी ब्राह्मणौने ब्राह्मण बैवे पहिली पापणे घरमीमन्त्री भक्तिसहित सूर्यपाक रसवती केलवी जिमाडी दक्षिणा देई संतोष्या वीजे दिम
राय धमपतसिंह बाहादुर का आ.सं.उ.४१ मा भाग