SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा एहवो विचित्र कर्मनी गति के इम जाणो मन मांहि चिंतवे छ किण ही ऊपाय विना दर्शन चक्रवर्तिनी सुलभ नही थाये इम चितवी घणी लांबा वांस लेई तेहने अग्रौ पुराणा खासडानो माला करौ वांगाग्रि वांधि स्तभतणीपरौरोपौवइठो तेतले चक्रवर्ति रे वाडी नोक त्यो चक्रवर्तिते ब्राह्मण देखो वंशानि धजा सरौषो माला देखोवोलायो ए कुण छ तेतले एकने कहता दश पनरे तेडौवा गया ब्राह्मण तेडी आंखो तेतले दृष्टिगोचर आयो ते तले ओलख्यो चक्रवर्ति मनमांहि ओलख्यो दोहिलो वेलानो मित्र जांणी अत्यंत आदर सम्मान देई अभ्युत्थान कोधी एहवी देखौ समस्त मुकटबंध राजाप्रमुख ४ सभा लोक विस्मित लोक थयो ए दरिद्रवां भणीयाने एतलो आदर केहवो इम न जाणे ए महान्त पुरुष छेहडो न देखाडे इणे कारण अपूर्व वस्त्र पहि * रावी आपण अर्धासने पालखौवेसारी आगत स्वागत पूर्वक समाधि पूछौ सहित रेवाडौई जई राजभुवनाहि आव्याछे स्रान मंजन अलंकारमंडित ४ करो भोजन मंडप वेसारी भोजन कराव्यो केतला एक दिन माहो माहिवार्ता विनोद गोष्टि रमल क्रौड़ा करता दिवस उल्या ते तले चक्रवर्ति ब्राह्म ण प्रते कहूं अही मित्र मुझ कन्हे कुछले ताहर मन रुचि पावे ते भांगि जिम ते तुम्हने देईवाचाऊरण थाउ जे भणी कह्यो राज्यं यातु थियो यातु प्राणा यात मलोमसाः कृतं तेन हारितं ।२। पत्थर रहा विहडे जतु महु तेण घडीय दिवसेणं। सपुरिसा नवयणं काले नगरएन विहडंति ।३। इण कारणे अपणो वाचा प्रतिपालु राज्यलक्ष्मी सफल करु यतः किंताएलच्छौए सेसफल रयणकोस तुलाए जाससयणे हि नभूत्ता। जानहु दिट्ठा रूलजणहिं ।।। तिवार विप्रने एहवी मती आवो जैह भणी मनुष्यने कर्म ने अनुसार बुद्धि ऊपजे सा सा संपद्यते बुद्धिः सा मति सा च भावना। साहायातादृशा जे या यादृशौ भवितव्यता ।। चक्रवर्तिने ब्राह्मण इसी कह्यो स्वामी माही स्त्री के तेहस्युं संगत करो तुम समीपे मांगु राजाई कयो जे इम तो जई पूछ आवो संघात घणा मनुष्य घोडला देई ते ब्राह्मण घरे मोकल्यो राजानी अनुज्ञाईते घरे प्राव्यो घण चन्द स्यं परिवस्यो स्वोरलियाईतधई प्रागत राम धनपतसिंह बाहादुर का आ.सं.उ.४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy