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उ.भाषा
अ०२
8 तो अम्ह ने कहि ज्यो हिवे ते शिथनो गुरु उपर राग हुतो अने गुरे कह्यो ताहरो मुझ उपरि मोह छे तू देवता थावे तिवार मुझने प्रावि कही जे जे
मरी हु देवता थयु पिणते प्रावी न कह्यो तिवारी आषाढ़ भूतो आचार्य चिंतवे के चेला बलभ हुता क्रिया कलाप हु'ति जो देवगति पाम्याहता तो कहतो पिण ते देवगति न थी पाम्या एहवी संका उपनौ अने देवता थयो ने तो सुखमे लौन देवीने भोग राता थका नावे गतकालन जाणे हिवे गुर चितव्यो जो लोकनासुख थी काइ' चुकौये इमचारित्र थौ भृष्ट थई गच्छ छांडी एकाएकनीकल्यातहवे लघु शिष्यदेवतानो पासन कंप्याअवधि ज्ञान करी ने देखे तो गुरु चारिच थी पद्या के तो हु' जई राखुइम चितवी देवताइ वाटे गुर पावता जाणी भाटकनी रचना करी गुरु तिहां भावीनजीवा लागा तिहाँ छ मास लगिजोई वली प्राधा चाल्यावली देवताई संयमनी परिक्षाभणी वालक छह भूषण सहित विकुा सहवगुरु विमास्योज यह धर्म पादर स्य तो धन जोई मेतो अने मुझने धन उपाववानी कारण कोई आवे नही तो एवेडिमा वालक हे ते विणसी इम चितवी पालक नाम पृथवी काइ यो पूछो ते विणासी ग्रहणा लेईको लिम घाल्या आगलि जातां अपकाइया ३ वायुकाइया ४ वनस्पसिकाइया ५ समकाया। एहवे नाम वाल कतै मारौ ग्रहणा लेइ झोलीमा घाली गुरु प्राधा चाल्या वली देवताई सार्थवाहनो रूप करी प्राचार्यने वांदी पाहारनी प्राग्रह कीध गुरु शशित थका कहे आज अम्हरिखप नही पाहारनी इम तेण सार्थवाह झोलौ छोडौ देखे बाल कना पाभरण ते गुरुने को है भगवन् पहारा पुत्रनाए ग्रहणा अम्हारा पुत्र किहां इम कह थके गुरु भयभ्रांत थई धूजवा लागी गुरुनाम धरावो एकाम करी वीजाने तुम उपदेश घी भने जो तुमे एकाम करिस्थी ती हुन राखिस्से इम करतां कैडे वाहिर पाई देवमायाइततकाल ग्रहणासहित देखि गुरुने पराभव करीवा लागा तिघारे चार सरणा कीधा तिवार देवताइ चिंतव्यो गुरे सर्वनी गम्यो पिण बोधवीज सम्यक्त नयी नींगम्थी तेकाई नथी विणठी तत्काल पापणो रूपप्रगट करी पूच्यो है भगवन्
राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा०सं० उ. ४१ मा भाग