________________
उभाषा अ०२
नगर वे भाई वैराग्य थी दीक्षा लिधी ते माहिं एक विद्यावंत वौजो मूर्ख जे विद्यावंत ते आचार्य पद पाम्यो अनेक शिष्यने अर्थ विचार कहतां अति वांत खेद खिन्न हुयी तिवार चिंतव्यो भण्यामांहि मूर्ख पणुं भलो जे मूर्ख दौसता गुणयत: मूर्ख त्वं हि सखे ममापि र चितं यस्मिन् यदिष्टौ गुणा निधितो बहु भोजनी पमना नक्त' दिवायायकः कार्याकार्य विचारणांधवधि रोमानापमानसमः प्रायेणामयवजितो दृढवपुर्मुखं सुख' जीवति १ एहवी चिंतवां ग्यानावरणी कर्म ऊपायों केतले दिने कालकरौ देवता हो तिहाथोचवि अहौरने कुले पुत्रवण उत्पन्न ही कालांतरि दौख्या लोधौ तिण उतराध्ययननायोग वहां त्रिण अध्ययन करौ भण्या तेहवे पाछि लाभ वनो कर्म उदय आव्यो आंविलकरी असंखयं अध्ययन भण्या वारे वरस पांवि लतप करी कर्म खपावी केवल ग्यान अपनी जिम तेंण अज्ञान परिसह सह्यो तिमवीजें सहिवी ईत्यज्ञान अहिर पुत्र फथा अग्यान पणाथो सम्यक्त ने विर्ष संदेह सहित थावानी संभवत भणौ दर्शन परीसह २२ मो कहे के न• नथौ नू निवे प० परलोक इ० पामी सही पादिलब्धि रूप ऋद्धि पिण नथो त तपस्वी अ० अथवा वं० वयोम० माहरो आत्मा भोग थौ मस्तकलो चादि करवे करी इ. एहवीभि. साधु न० न चिंतवे ४ ४ पूर्व हुवा जि. जिन सर्वन प्र. के जिनसर्वत्र वर्तमान काल महाविदेह खेत्रने विषे अ० अथवा आगामौर कालेपिण भ. एस्थे जिन सर्वन मु. मृषा ते जिननी आस्ति कहे के ए. इम मा वोले मृषा इ० एहवो भि० साधु न० न चिंतवे ४५ अथ दर्शन परिसह दृष्टांत भूमिपुर नामा नगर आखाढ़ भूति नामा प्राचार्य तहने घणा शिष्य क्रियावंत केतलेक दिवसे आचार्यना मन माहिं एहयोदर्शन सम्यक्त नो संदेह अपनोजेतिथंकर एवा के आगे सौ किंवा नही होसी महाविदेहे जिन के तथा नही छे देवलोक जाइछे किंवा नही जाय के एहवो मनमे संदेह करतोहुवी अनेमाहरा शिष्य घणाचारित्र पालिने स्वर्गे गया ते किणहो पाछो पाविने कच्चो नही कि अम्हे चारित्र थौ देव मुख पाम्या हिवे एक लघु शिश्च संथारो कश्ची तिवारी गुरु कह्यो तुम्हें देवता हुवो
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ.सं.उ.४१ मा भाग