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भाषा
ना सत्कारादिक अणदौधे धके तपें नही प० प्रज्ञावंत साधु ३८ अथ सत्कार परीसहदृष्टांत मथुरानगरौयें जयसिंह राजा सेह, इन्द्रदत्त नामा पुरोहित मिथ्यात्वोछे तेणें गोखवेठा राजमदै चारित्रिया वाटे आवता देखौ गोखथौ हेठा पग करौ जे हवे गुरु गोखथौ हेठा नौंकले तेहवे तेणें मस्तके पगदीधो तेहवो स्वरूप साधुनो श्रावक दौठो तिहासेठएहवी प्रतिज्ञा कौधौ माहरो जीवतव्य प्रमाण जोएपरोहितना पग छेद करीये तिवार श्रेष्टि पुरोहितना छिद्रताक पिणकाई चले नही तिहांधके ते पुरोहितनी स्वरूप गुरुने कह्यो वलतो गुरु कहे महानुभाव महात्मा पूजासत्कार निन्दा ते समगिणे सत्कार असत्कार परीसह सहे वलो श्रेष्टि कहे भगवन् मिथ्या त्वचेद्योजोइये यतः साधूण चेई याणय पडिणीयंतह अवस्वायंच जिण ६ वयणस्म अहियं सव्वत्थामणवार १ साधुनोज्ञान नो उपद्रवकरणहार अवर्ण वादनी बोलण हार जिन बच्चन नो उत्थापक एहने यथा शक्ति शिष्या न देता विराध कहुइ वलोवेष्ठि कहे भगवन् मिथ्या त्वीने सौखदीधी जोईये एवचन सांभली गुरु बलीयेष्टिने पूच्ची हिवणांए परोहितने घरस्य॑ हुवेंछे तिबारे श्रेष्टि कहे एहने नवी अवास नौपनीछे तिहां राजा जोमवानु निहुतस्त्रोछे तिहां राजा प्रावास माहिं जोमवाबेसे तिवार तु राजानो हाथसाही ऊभीराखि कहिजें खामौए घरमांमापे सो हिवडा अवास पडिस्य तिहाथ कुंतेथे वेष्ठि राजा नोतरे आवास माहि आवे पैसे तेहवे राजाने ऊभोराखि कह्यो मतांपधारोएअवास पडिसौतेहवे ततकाल आवास पयो तिबार राजाई कह्यं एस्थु घाटि श्रेष्ठि कह्यो अम्हने ग्यानी गुरे कयो राज हर्ष थको गुरुने पगै लागी वोत रागनो धर्म पडिवज्यो थेष्ठिने ते पुरोहितनी पदवीआपि श्रेष्ठिरानाने आगलि कह्यो स्वामी परोहितोये चारित्नौयाने माथे पग मूक्यो हतो तो एहलोकना फल देखाडिये राजापुरोहितने हडिघाल्योकेतले दिने श्रेष्ठिराजा नेकहे गुरुना पग धोइ पौवेतो मुकजी तिणे हां भरी समस्तलोक समक्ष चरणोदकपायो प्रतिज्ञा सेठ पूरी कौनौ जिम साधु महापुरुष परीसहसयो श्रेष्ठि नथी सह्य तिम
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ. सं. उ०४१ मा भाग
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