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________________ १ टीका * एसो अज्ञातैषी जाति कुल स द्रव्यनि द्रव्यादिनापरीक्षित: अज्ञात स्तादृशं गृहस्थं आहाराद्यर्थ' एष यतीत्येवं शौल अज्ञातैषी पुनः कीदृशो भवेत् ११३ अलोलुपः सरसाहारलापव्य रहितः पुनः साधुः सरसाहार भक्षणासक्ता वौच्यरसे पुनः अनुग्रहीयात् सरसाहाराभिक्षा न कुर्यादित्यर्थः पुनः पनवं ___णुतप्येज्ज पसवं ॥ ३८॥ सोनूणं मए पुवं कम्मा नाण फलाकडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुठ्ठो केणदू कन्हुई ॥३६॥ अह पच्छा उज्जति कम्मा नाण फला कड़ा। एव मसासि अप्याणं नच्चा कम्म विवागयं ॥४०॥ निरठग मि विरो सूत्र भाषा न करिवो इति सत्कारपरीसह दृष्टांत हिवे प्रज्ञापरीसह २० मो कहेछे से० ते प्रज्ञावंत साधु इम जाणे नू० निश्वेमए मे पू० पूर्वजन्मांतरेइ क० करतो ना. ग्याननौ प्रसंसादिक ग्यानपामि जे. जेणे करतेह नर मनुथपणे अ० जीवादिक पदार्थ जाणुछ पू० पूच्यो धको के० कोइ मनुष्यादिक कोई कस्था न कने विर्षे ४० अ. हिवे वली प० आगमौइ काले उ० जदे आवस्य क० कर्म अ० अग्यान पणुपामि वानो फल जे पूर्वकर्म जन्मांतरे कौधा हताइ ए. एणौ परेंमें स्वस्थपण कर ज. पापणी आत्माने घणी प्रज्ञापा मौने शुभाशुभकर्मना विपाक ४१ अथ प्रज्ञायां दृष्टांतमाह उजेणीइ कालि काचार्य तेहना शिष्य प्रमादी इवा जाणिजे शिज्या तरने कही पांचसे तिहां शिष्य मूकौने गुरे सुवर्ण कूलि तटि पुहताछ तिहां आपणा शिष्यनी * शिय मागरचंद्र चेला कन्हे पहुता पिणते ओलखे नही गुरु पासे रही सागरचंद्र वखाण करे गुरुने पूछे भाहरी वखाणके हवो तुमे घणु यती नाव खांण सांभल्या हुस्य गुरु कहे तुमा रावखाण रूडो तिम २ अभिमान वाधे लोकनें कहे सर्व जाएछु इम गर्वधरै एहवे जे पूर्व गुरे ५० • साधु मुंक्याहता तिणे प्रभातिथेइ गुरुपोसालमाहिं जोया किहां देखें नही पर्छ शिज्यातर श्रावकने पूछे तो श्रावक कहे तुमनेप्रमादि जाणी विहार .राय धनषतसिंह बाहादुर का आ-सं० उ०१४मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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