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________________ उ० टोका अ०३६ १०३८ सूत्र भाषा ******* रहिताः मोचगमनादनन्तरं अवागमना भावात् अन्तरहिताः ते सिद्धाः पृथक्कन बहुजन सामस्त्या पेचया अनादयो अनन्ताथ ६६ पुनस्तेषामेव स्वरूपमाह [ अरूविणो जोवधया नाग दंसण सत्रिया घडलं सुह संपत्ता उवमा जस्म नत्थिओ ६७] ते सिद्धाः अरूपिणो वर्त्तन्ते रूपरहितत्वेन रस गंध अर्थानां अपि अभाव: लेयारहिता अपि पुनः कौडमा सिचाः जीवघनाः जीवाच ते घनाथ जीवघनाः जीवाः सचिदुपयोगयुक्ताः घना अन्तर रहितत्वेन जोब प्रदेशमया पुनः कीदृशः ज्ञानदर्शन संहिताः केवल ज्ञान केवल दर्शने एव स जा जाता येषांत ज्ञानदर्शन स शिताः ज्ञानदर्शनोपयोग वन्त इत्यर्थः पुनः कीदृशाः अतुल' अपरिमितं सुख प्राप्ताः यस्य सुखस्य उपमानास्ति तत्सुखं प्राप्ता इत्यर्थः यतः कर्मक्कश विमोचाच मोचे सुख मनु उत्तरमिति ६७ अथसिद्धानां क्षेत्र स्वरूपमाह [लोएगदेसे ते सब्वे नागदंसण सनिया संसार पार निच्छिवा सिद्धिं वर गहूं गया ६८ ] ते सिडा या अपज्जबसियाविय ६६ ॥ अरुविण जीवघणा नाण दंसणसन्निया । अउलं मुह संपत्ता उवमा जम्म नत्थि ओ६७॥ लाएग देसे तेसेब्वे नाणदंसण सन्निया । संसार पार निच्छिन्ना सिडिंवर ग गया ६८ ॥ संसारत्याउ जे जीवा दुबि विवरपूरा तेथे केवलज्ञान केवल दर्शन संज्ञावंत एतले ज्ञानदर्शनना उपजोग सहोत अतुलं घण सुख पाम्याके जेहनी सुखनौचोपमानथी अनंत सुख (६ लोक चउदराजना एक देम विभागने विखे ते सर्व सहके केवलज्ञान केवलदर्शन उपयोग सहित गत चार संसारनी पारनी वास्त्रो जेणे सिद्धे सिहरू उत्तम गति गया एतले सौद्ध गया ६७ हिवे संसारी जीव कहके संसार संबंधिया जे जोव विदु प्रकारे ते कया तौर्थ करे ते केव्हा एकत्र सबोजा थावर ते वैवस घावरमाहि थावरविड' प्रकारे ६८ ते तौन केहा पृथिवो जोव अप्पकाईया जोब तथा बलिवनस्पति जीव ए घावर. ********************************************* हराम धनपतसिंह बाहादुर का था •सं.उ. ४२मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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