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तेरापंथ-मत समीक्षा । mmmmm.wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww पूरी कराई। चौमासे के समान होनेपर भिखुनजी उस भगवतीजीके पुस्तकको ले करके चलने लगे । तब रुघनाथनीने कहा:-' पुस्तक छोडते जाओ।' परन्तु भिवुननी तो लेकरके ही चले। पीछेसे दो साधुओंको भेज करके रुघनाथजीने वह पुस्तक मंगवा ली । वस ! इससे आपके हृदय मंदिरमें क्रोधाग्नि प्रज्वलित भी हो गई और आपने यह निश्चय भी करलिया कि-' में नया मत निकालु और रुघनाथजीको कष्ट हूँ। ' अस्तु !
आपने मेडतेसे विहार करके मेवाडमें आकरके राजनगरमें चातुर्मास किया। यहाँपर सागर गच्छके यतिका एक भंडार था। उस भंडारमें ते श्रावक लोग उसको, जो चाहिये सो पुस्तके देने लगे। परन्तु ठीक है । स्यावाद शैलीयुक्त, अनंतनयात्मक श्रीजिनवचन के सच्चे रहस्यको, समुद्र समान गंभीर बुद्धिवाला भी गुरुगमताके सिवाय, प्राप्त नहीं कर सकता है, तो भिबुननी जैसे, अव्वल तो मूर्तिके उत्थापक, गुरुगमताका नामो निशान नहीं, और फिर टना-टब्बीसे काम लेनेवालेको, सच्चा रहस्य न मिले और वैपरीत्य पैदा हो, तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं।
ठीक हुआ भी वैसाही । ज्यों २ भियुननी अपने आप-: से पढता गया त्यों २ उसके ऊपर अनेक प्रकारकी शंकाएं और कुतर्क सवार होने लगे । अन्तमें अविधिसे सूत्र पढनेका प्रभाव, भिखुनजीके ऊपर बरावर पडा। भिखुनजीने पहिले पहल इस दयाका ही शिरच्छेद किया, जो कि जिन शासनका प्रधान मंत्र है-जिन शासनका प्रधान उद्देश्य है । भिखुनजी ने इस प्रकारकी प्ररूपणा की:--