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तेरापंथ-मत समीक्षा ।
(मारवाड )में जो चर्चा हुई, उसका सारा वृतान्त, तेरापंथीके तेईस प्रश्नों के उत्तर और अन्तमें तेरापंथियोंसे पूछे गये प्रश्न भी लिख दिये गये हैं । आशा है पाठक, इसको ध्यान पूर्वक पढ़ेंगे।
तेरापंथ-मतकी उत्पत्ति । _ यह पंथ.१८१८ की सालमें शुरु हुआ है। इसकी उत्पत्ति इस तरह हुई:___" संवत् १८०८ की सालके लगभगमें मारवाडमें ढूंढक बाईस टोलेके, रुघनाथजी नामक साधु, अपने शिष्यों के साथ विचरते थे। इनके पासमें सोजत-बगडीके नजदीक कंटालीए के रहने वाले भिखुनजी नामक ओसवालने दीक्षा ली । किसी समयमें रुघनाथजी, मेडतेमें भिखुनजीको श्रीभगवती मूत्र पढाते थे । यद्यपि भिखुनजीकी बुद्धि कुछ तीक्ष्णथी, परन्तु विचारशक्ति उलटी होनेसे बहुतसी बातोंमें इन्हें विपरीतता मालूम होने लगी। इसकी चेष्टा सामतमल धारीलाल श्रावक जान गया । इस श्रावकने रुपनाथजीसे कहा:- 'आप इसको भगवती सूत्र पढ़ा रहे हैं, परन्तु यह तो पयःमानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम् ' जैसा होता है। यह आगे जा करके निव होगा । और उत्सूत्र प्ररूपणा करेगा।'
रुपनाथजीने कहा:-'पहिले भी श्रीवीरभगवान ने गोशालेको बचाया है । जमालीको भी पढाया और निह्नव हुआ तो क्या किया गया ? अाने २ कर्मानुसार हुआ करता है । इसका भी कर्मानुसार जो भावि--होनहार होगा सो होही जायगा।' इस तरह कह करके उन्होंने भगवती तो