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________________ ४४ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । Burgess notes of visit W. S. Hill Bombay 1869. इस सेजय पर्वतकी चौहद्दी इस प्रकार है: पूर्वमें-घोघाके पास कच्छखाड़ी, भावनगर । उत्तरमे सिहोर और चमारड़ीकी चोटियां, उत्तर पश्चिम व पश्चिम मैदान जहांसे श्री गिरनारजी दिखता है । यहां सेत्रुञ्जय नामकी नदी भी है। (२) गिरनार या उज्जयंत-यह मुख्यतासे जैनियोंका पवित्र पहाड़ है, परन्तु बौद्ध और हिन्दू भी मानते हैं। यह जूनागढ़के पूर्व १० मील है । ३५०० फुट ऊंचा है । चूडासमास राजाका पुराना महल और किला अभीतक बना हुआ है । यहां तीन प्रसिद्ध कुंड हैं-गौमुखी, हनुमानघोरा, कमण्डलकुण्ड । पर्वतके नीचेसे थोड़ी दूर जाकर वामनस्थली है । यह प्राचीन कालमें राज्यधानी थी तथा बिलकुल नीचे बलिस्थान है जिसको अब बिलखा कहते हैं। पर्वतका प्राचीन नाम उज्जयंत है । पर्वतके नीचे एक चट्टान है जिसमें अशोकका शिलालेख ( संवतसे २५० वर्ष पहलेका ) है । दूसरा लेख सन् १६० का है जिससे प्रगट है कि स्थानीय राजा रुद्रदमनने दक्षिणके राजाको हराया था। तीसरा सन ४५५ का हैं जिसमें लिखा है कि सुदर्शन झीलका वांध टूट गया था तथा तूफानसे नष्ट हुए पुलको फिरसे बनाया गया । देखो Fergusson History of India's architecture 1876 P. 230-2 पर्वतपर सबसे बड़ा और सबसे पुराना मंदिर श्रीनेमिनाथका है जो लेखसे सन् १२७८का बना मालूम होता है । इस मंदिरके पीछे तेजपाल वस्तुपाल दो भाइयोंका निर्मापित मंदिर है।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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