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________________ ३४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। मानोंने इसे १३वीं शताब्दीमें ध्वंश किया। बहुतसे वर्तमानमें बने हुए मंदिरोंमें पुराने मंदिरोंके खण्ड व मसाले पाए जाते हैं। पंचासर पार्श्वनाथके जैन मंदिरमें एक संगमर्मरकी मूर्ति है जो पाटनके स्थापनकर्ता वनराजकी कही जाती है । इस मूर्तिके नीचे लेख है जिसमें बनराजका नाम व संवत् ८०२ अंकित है इसी मूर्तिकी बाई तरफ वनराजके मंत्री जाम्बकी मूर्ति है। श्री पार्श्वनाथके दूसरे जैन मंदिर में लकड़ीकी खुदी हुई छत बहुत सुन्दर है तथा एक उपयोगी लेख खरतर गच्छ जैनियोंका है । दूसरे एक जैन मंदिरमें वेदी संगमर्मरकी बहुत ही बढ़िया नक्कासीदार है जिसपर मूर्ति विराजित है। नोट-इस पाटनमें जैनियोंका शास्त्रभंडार भी बहुत बड़ा दर्शनीय है यहां दोआने जैनी बसते हैं । उनके सब १०८ मंदिर हैं प्रसिद्ध पंचासर पार्श्वनाथका है जिसमें २४ वेदियां हैं । ढांढरवाड़ामें सामलिया पार्श्वनाथका बड़ा मंदिर है जिसमें एक बडी काले संगमर्मरकी मूर्ति सम्पतीराजाकी है । वहीं श्री महावीरस्वामीका मंदिर हैं जिसमें बहुत अद्भुत और मूल्यवान पुस्तकोंके भंडार हैं । इनमें बहुतसे ताड़पत्रपर लिखे हैं । और बड़े २ संदूकोंमें रक्षित हैं। (४) चूनासामा-बड़बाली तालुका-यहां बड़ौधा राज्यभरमें सबसे बड़ा जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथजीका है इसमें बढ़िया खुदाईका काम है- इसी शताब्दीमें ७ लाखकी लागतसे बना है। , (५) उन्शा-सिद्धपुरसे उत्तर ८ मील । कोड़ावाकुनवीका
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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