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भरुच जिला ।
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इटावा ( युक्तप्रांत) के पंसारी टोलाके मंदिरमें लाला विलासरायके संस्कृत ग्रन्थ भण्डारमें है जो संवत् १५६९की लिखित है उसकी प्रशस्तिमें ये वाक्य है “ इदं श्री शैलराजस्य चरितं दुरितापहं रचित भृगुकच्छे च श्री नेमिजिन मंदिरे । गोलश्रृंगारवंशेनभस्य दिनमणि वीर सिंहो विपश्चित् । भावी पृथ्वी प्रतीता तनुरूह विदितो ब्रह्म दीक्षां सुतोऽभूत् । तेनोच्चैरेष ग्रन्थः कृति इति सुतरां शैलराजस्य सूरेः । श्रीविद्यानंदि देशात् सुकृत विधिवशात् सर्वसिद्धि प्रसिद्धै ॥ भाव यह है कि वीरसिंह गोल श्रृंगारेके पुत्र अजित ब्रह्मचारीने श्री विद्यानंदिजीके उपदेशसे भरोचके नेमिनाथ जिन चैत्यालय में रचा ।
इस भृगुकच्छ नगरमें श्री महावीरस्वामीके समयके अनुमान राजा वसुपाल राज्य करते थे तब वहां एक जैनी सेठ जिनदत्त रहते थे उनकी स्त्री जिनदत्ता थी । उसकी कन्या नीटी सती शीलव्रतमें प्रसिद्ध हुई है।
(देखो कथा २८वीं आराधना कथाकोश ब्र० नेमिदत्त कृत ) प्रमाण ।
क्षेत्रेऽस्मिन् भारते पूते लाटदेशे मनोहरे । श्रीमत्सर्वज्ञ नाथोक्त धर्म कार्यैरनुत्तरे ॥ २ ॥ पत्तने भृगुकच्छाख्ये सर्ववस्तु शतैर्भृते । राजाऽभूद्वसुत्पालाख्यो सावधानः प्रजाहिते ॥ ३ ॥ श्रेष्ठी श्रीजिनदत्तो भूणिक सन्दोहसुन्दरः । श्रीमज्जिनेन्द्र चंद्राणां चरणार्चन तत्परः || ४ ॥ तत्प्रिया जिनदत्ताख्या साध्वी सद्दानमंडिता | नीली नाम्नी तयोः पुत्री मुनीनामिव शीलता ॥ ५ ॥