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________________ पंचमहाल जिला। है। चांद नामका कवि अलहिलवाड़ाके भींडर प्रथमके वर्णनमें (१०२२-१०७२) पावागढके राजा रामगौर, तुआरका नाम लेता है । सन् १३००में चौहान राजपूतोंके हाथमें था ‘जो मेवाडके रणथांभोरसे भागकर आए थे' (१२९९-१३००)। सन् १४८४ तक इनके हाथमें रहा फिर सुलतान महमूद बेगड़ने इस तरह कबजा किया कि एक दफे पावापति श्री जयसिंहदेव पाताई रावल नौराहीमें अपनी राज्यधानी की स्त्रियोंका नृत्य देख रहे थे उस समय उन्होंने एक सुन्दर स्त्रीका कपडा पकड लिया, वह नाराज हो गई और यह बचन कहा कि तुम्हारा राज्य शीघ्र ही चला जायगा । थोडे दिन पीछे चांपानेरके ब्राह्मण जवालवने अहमदाबादके सुलतान महमूदसे मुलाकात की और चढ़ाई करवादी । जयसिंहने वीरता दिखाई, अंतनें संधि हो गई, जावा जयसिंहका मंत्री बन गया । सन् १५३५ में मुगल बादशाह हुमायूंने कबना किया ( देखो अकबर नामा )। सन् १७२७ में कृष्णानीने ले लिया। सन् १७६१ व १७७० में महाराज सिंधियाने कबजा किया । सन् १८५३ में बृटिशके हाथमें आया । इस पावागढ़के नीचे उत्तर पूर्वकी ओर राजशू चांपानेरके भग्न स्थान देखने योग्य हैं और दक्षिणकी तरफ गुफाएं हैं जहां थोड़े दिन पहले तक हिंदू साधु रहते थे । पर्वतपर पत्थरकी दीवाल महाराज सिंधियाने बनवाई थी। फाटकके आगे बढ़कर खास मार्गसे १०० गज दाहनेको जाकर १ खंदक है जो १०० फुट गहरी है, कोनेमें पत्थरकी भीतसे घिरा हुआ एक छोटासा कमरा है जो बिलकुल बंद है। भीतके छिद्रोंसे एक कबसी दिखलाई पड़ती है इसके
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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