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________________ १६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लिये यहां एक दन्तकथा है कि एक राजपूत रानीको यहां जीता गाड़ दिया गया था। इस पहाड़ीके कोनेपर एक कब है उसके आगे सात महलके खंड हैं । इस सात खनके महलको चम्पावती या चम्पारानी या कवेर जहबरीना महल कहते हैं। ऊपरके चार खन गिर गए हैं फिर पुरानी दीवाल है फिर किलेके भग्न हैं फिर जुलन बुदन द्वार है । ऊपर नागरहवेली है। सदनशाह द्वारसे १०० गज ऊपर मांची हवेली है । यह लकड़ीका मकान है जहां सिंधियाका सेनापति रहता था। पासमें पुरानी माची हवेलीके भम्नांश हैं, एक तालाब है, १ खंडित मसनिद है, ५ कूप हैं जिनमेंसे ४ नष्ट है १में बहुत अच्छा पानी है । माची हवेलीसे पाव मील जाकर मकई कोठारका दरवाजा है । इसमें ३ गुम्बज हैं। दक्षिण पूर्वकी तरफ १ ० ० ० फुटकी उंचाई पर भग्न द्वार है, पुराने मकान हैं, एक भीत हैं । यहीं जयसिंहदेव अंतिम पाताई रावलका महल है (सन् १४८४) । कोठार दरवाजेसे पाव मील जाकर पाटिया पुल आता है फिर पाव मील चलकर ऊपरी भागके नीचे पहुंचना होता है। फिर १०० गज चलकर तारा द्वारपर जा फिर १०० गज चल एक इमारत आती है जिसके दो द्वार हैं। नगारखानाके सामने सुरज द्वार है । इसको इंग्रेजोंने सन् १८०३ में नष्ट किया था, पीछे सिंधियोंने बनवाया । बाहरी द्वारमें जैन मंदिरोंके पत्थर लगे हैं। नगारखाना द्वारके भीतर कालका माताके मंदिर तक २२६ सीढ़ियां हैं (इनमें दि० जैन प्रतिमाएं भी चस्पा हैं) जिनको महाराज सिंधियाने बनवायी थीं । कालका माताका मंदिर करीव १५० वर्षका है । पासमें ही मुसल्मान सदन पीरकी कब है।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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