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________________ १७६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । भूगोल वेत्तामें (सन् १९०) व यूनानी लेखक पैरीप्लसने ( सन् २४०) चीनीहुईनसांगने भी सन् ६०० से ६४० में वल्लभी और सौराष्ट्रको भिन्नर प्रांत लिखा है। वल्लभीको वर्तमानमें गोहिलवाडा कहते हैं इसीको निनप्रभसूरिने सेव॒जय कल्पमें वल्लकवसाड़ लिखा है । (३) लाट प्रांत माही नदीसे ताप्ती तक है । टोलिमीने इसे लारिकी कहा है। तीसरी शताब्दीके वात्स्थापन रचित कामसूत्रमें मालवाके पश्चिम लाट देश आया है । छठी शताब्दीमें ज्योतिषी बराहमिहिरने भी लाटका नाम लिया है । अजंताके ५ वीं शदीके लेखमें है । मंदसोरका लेख (सन् ४३७) कहता है कि लाट देशमें रेशमके बुननेवाले थे । लाट निवासी राजाओंको राष्ट्रकूट वंशी कहते हैं । इस वंशका बडा राजा महाराजा अमोघ वर्ष था (सन् ८५१-८७९) उसने इसे राट्ट वंश कहा है । लाट लूर जो सौंदत्ती और बेलगामके राट्टोंका मूल नगर था इसी लाट देशमें होगा । भरुच और मालवाके धारके मध्यमें जो देश हैं जहां मुख्य नगर बाध और टांग है उसको अब भी राठ कहते हैं गुजरातमें गिरनार पर्वतकी चट्टानका लेख सबसे पुराना सन् ई० से २४० वर्ष पहलेका है दूसरा लेख वहीं क्षत्रप रुद्रादामनका सन् १३९ का है। इनमें मौर्य महाराज चन्द्रगुप्त (सन् ४० से ३०० वर्ष पहले) का वर्णन है। हेवट साहबने गुजरातका पता सन ई० से ६००० वर्ष पूर्व तक लगाया है । मिश्र देशमें जो कब खोदी गई हैं वे सन ई० से १७०० वर्ष पहलेकी हैं उनमें भारतीय तंजेव व नील पाई गई है (J. R. A, S. XX 206) सन् ई० से ४०००
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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