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________________ गुजरातका इतिहास। [ १७७ वर्ष पहले तक भारतकी लकड़ी तथा सिंधुमें अर्थात् भारतीय तन्जेवोंमें पश्चिमीय भारत और युफ्रटीज नदीके मुख तकके देशसे व्यापार होता था । द्राविड़ भाषा बोलनेवाले सुमरी लोगोंका संबंध सिनाई और मिश्रसे था, जिनका सम्बन्ध पश्चिम भारतसे ६००० वर्ष सन्के पूर्व तक था ( Compare Hibtert lectures J. R. A. S. XXI 326 ) हिन्दू धर्म शास्त्रोंमें गुजरातको म्लेच्छ देश लिखा है और मना किया है कि गुजरातमें न जाना चाहिये । ( देखो महाभारत अनुशासन पर्व २१५८-९ व अ० सात ७२ व विष्णुपुराण अ० हि० ३७) । भारतके पश्चिममें यवनोंका निवास बताया है (J. R. A.S. IV 468) प्रबोधचंद्रोदयका ८७ वां श्लोक कहता है कि जो कोई यात्राके सिवाय अंग, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र तथा मगधमें जायगा उसको प्रायश्चित लेकर शुद्ध होना होगा । (स० नोट-ऐसा समझमें आता है कि इन देशोंमें जैन राजा थे व जैन धर्मका बहुत प्रभाव था इसीलिये ब्राह्मणोंने मना किया होगा।) मौर्योके अधिकारके समयसे गुजरातका इतिहास ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन लेखोंमें मिलता है। मौर्य्य लोग बड़े उदार शासक थे, और इनकी प्रतिष्ठित मित्रता यूनान व मिश्र देशके राजाओंसे व अन्योंसे थी। (Mauryasere beneficent rulers and had also honorable alliances with Greek aad Egyptian Kings etc. ) इन कारणोंसे मौर्य वंश एक बड़ा बलवान व चिरस्मरणीय वंश था । शिलालेखोंसे यह वात विश्वास की जाती है कि मौर्य १२ .
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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