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________________ रत्नागिरी जिला | (२६) रत्नागिरी जिला । इसकी चौहद्दी इसप्रकार है- उत्तरमें जंजीरा कोलाबा, पूर्वसतारा, कोल्हापुर, दक्षिण- सावतवाड़ी, गोआ । पश्चिम - अरब समुद्र । इतिहास - यहां चिपतून और कोल गुफाएं यह प्रगट करती हैं कि सन् ई० से २०० वर्ष पूर्व से ५० सन् ई० तक यहां बौद्धोंका जोर था । पीछे यहां चालुक्य राजाओंका बहुत बल रहा । सन् १३१२ में मुस० ने कबज़ा किया । मुख्यस्थान । (१) दामल - समुद्रसे ६ मील, बम्बई से दक्षिण पूर्व ८५ मील | अजनबेल या विशिष्ट नदीके उत्तर तटपर यह बड़ा प्राचीन स्थान है । बहुतसे ध्वंश स्थान हैं । यहां एक चंडिका बाई का मंदिर नीचे भौर में हैं, यह उसी समयका है जिस समय बादामी (बीजापुर जिला) की गुफाओं के मंदिर बनाए गए थे । बरवार नामका स्थानीय इतिहास है । उसमें कहा है कि ग्यारहवीं शताब्दीमें दाभल बलवान जैन राजाका स्थान था और एक पाषाणका लेख शालिवाहन १०७८ का पाया गया है । यहांके लोगों का कहना है कि इसका प्राचीन नाम अमरावती था । (२) खारेपाटन - ता० देवगढ़ - इस नगरके मध्य में करनाटक जैनी रहते हैं । एक जैन मंदिर है, मंदिरमें एक छोटी पाषाणकी कृष्णमूर्ति है जो एक नदीकी खाड़ी में पाई गई थी । राष्ट्रकूट वंशके ताम्रपत्र भी यहां मिले हैं । ( Indian Ant: Val II 321 and IX 33 ). [ १४७
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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