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१४४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक।
मुख्य स्थान । (१) चिवल या रेवडंड-बम्बईसे दक्षिण ३० मील, कुंडलिका नदीके उत्तर तटपर । यह बहुत ही प्राचीन स्थान है। कन्हेरी गुफाओंमें (सन् १३०-५००) में इसका नाम चेमुला लिखा है। हुइनसांगने चिमोलो लिखा है। पौराणिक समयमें-इसको चंपावती या रेवतीक्षेत्र कहते थे । ९१५ में अरब यात्री मसूदीने इसका नाम सैमूर दिया है-उस समय यहां राजा झंझा था। सन् ९४२ में यहांका वर्णन यह प्रसिद्ध है कि यहांके लोग मांस, मत्स्य व अंडे नहीं खाते थे । सन् १३९८ में वहमनी बादशाह फीरोजने यहांसे जहाज दुनियांकी सुन्दर वस्तुओंको लानेके लिये भेजे थे । सन १९८६ में यहां भारतीय तटसे नारियल, मसाले, औषधि, चीन व पुर्तगालसे चन्दन, रेशम आदि तथा यहांसे मलक्का, चीन, उर्मन, पूर्व अफ्रिका, पुर्तगालको लोहा, अन्न, नील, अफीम, रेशम, अनेक प्रकारके रुईके कपड़े, सफेद, रंगीन, छपे हुए भेजे जाते थे।
There would seem to have been (about 1584 A. D.) a strong Jain and Gujrati Wani element among the merchants of Cheul as Fitch English man describes, the gentiles as having a very strange order among them. They killed nothing, they ate no flesh, but lived on roots, rice and milk In Cambay they had hospitals to keep lame dogs and cats and for the birds. They would give food to ants ( Fitch in Hakluyt's Voyage 384) ___ भावार्थ-सन् १९८४ के अनुमान यहां बहुतसे मैन और गुजराती बनिये व्यापारी थे । जैसे फिच इंग्रेज लिखता है कि जो किसीकी हिंसा नहीं करते थे, वनस्पति, चावल व दूध खाते थे।