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कोलाबा जिला ।
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था । भारतीय जहाज कपड़ा, लोहा, रुई ले जाते थे व वहांसे हाथीदांत व सींग लाते थे ।
छठी शताब्दी में मौर्य लोग या नल सर्दार राज्य करते थे । चालुक्योंका प्रथम राजा कीर्तिवर्मा (सन् १५० से १६७ ) - जिसने कोंकणमें चढ़ाई की थी- नल और मौर्यो के लिये यमके समान वर्णन किया गया है। कीर्तिवर्माका पोता पुलकेशी द्वि० (६१०--६४०) था । जिसने कोन्कनको विजय किया । इसने लिखा है कि उसका सर्दार चंड-डंड मौर्योको भगानेके लिये समुद्रकी तरंग था (Arch S. R III. 26 ) थाना जिलेके वाडसे लाए हुए एक लेखयुक्त पाषाण (पांचवी या छुट्टी शताब्दी) से मालूम होता था कि उस समय कोंकण में सुकेतुवर्मा राज्य कर रहा था । इस चालुक्य सर्दार चंड- दंडने मौर्योकी राज्यधानी पुरी (अज्ञात) पर हमला किया था । यह नगर पश्चिमीय भारतकी लक्ष्मीदेवीका स्थान था ।
वीस शिलाहारोंने थाना और कोलाबा में सन् ई० ८१० से १२६० तक राज्य किया था। पांचवां राजा झंझा था जिसका वर्णन अरब इतिहासज्ञ ममूदीने लिखा है कि वह सन् ९१६ में चिवलमें राज्य करता था । तथा चौदहवां राजा अनन्तपाल या अनन्तदेव था (सन् १०९६) जिसने दो मंत्रियोंकी गाड़ियों पर कर माफ कर दिया था जो चिवल बंदरपर आती थीं। तेरहवीं शताब्दीमें देवगिरिके यादवोंने राज्य किया । सन् १३७७में विजयनगरके या आनेगुंडीके राजाओंने कोंकणके कुछ बंदर लेलिये । मुसल्मानोंके पहले दक्षिण कोंकण जिसमें वर्तमान कोलाबा है लिंगायतवंशी राजाओंके हाथमें था जिनको कड़ा राजा कहते थे जिनका मुख्यस्थान आनेगुंडी था ।