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________________ उत्तर कनड़ा जिला। [ १३६ पुराने मकानोंके ध्वंश हैं। पहले यह बड़ा समृद्धिशाली जैन नगर था। यहां तीन जैन मंदिर भटकलके समान हैं उनमेंसे दोतो ग्राममें हैं व एक चन्द्रगिरि पर्वतपर जीर्ण है। (११) होनावर-एक व्यापारका प्राचीन स्थान । यह शिरावती या जरसप्पा नदीके तटसे दो मील है। यही हनुरुहद्वीप है। जिसका वर्णन पम्प (९०२-४३ ) ने जैन रामायणमें किया है । यूनान लोगोंने इसको नबुरके नामसे कहा है। (१२) कलटीगुडड-एक पर्वत २५०० फुट ऊंचा होनावरसे उत्तर पूर्व १० मील यह स्थान जरसप्पाके जैन राजाओं (१४०९१६१०) के आधिपत्यमें एक महत्व पूर्ण हाविग संस्थान था । (१३) कुम्ता-रूईको जहाजपर लादनेका खास बंदर । यह याद्री नदीसे ३ मील है । यह जैनवंशका मुख्य स्थान था जिनके हाथमें दक्षिण होनावर तक स्थान था । (Buchanan Mysore and Canara III 53 ) (१४) मुर्देश्वर-होनावरसे दक्षिण १३ मील । व वैलूरसे दक्षिण ३ मील । एक कंदुगिरि नामकी छोटी पहाड़ीपर एक जैन मंदिर है जिसको कहा जाता है कि कैकुरीके जैन राजाओंने बनवाया था । यहां बहुतसे पाषाणोंपर अच्छी नक्कासी बनी हैं । फसली १२२१ में सर्कार इस मंदिरको १४४०) वार्षिक देती थी। यहां ३१ शिलालेख शाका १३३६ और १३८१ के हैं । स्कूलके पश्चिम ५० गजपर १ जैन लेख ५४ लाइनका है हरएकमें ५० अक्षर हैं ।बंगलोंसे उत्तर पश्चिम दो मील एक जीर्ण जैन मंदिर वस्ती मकीके नामसे हैं । यहां बहुत सुन्दर लेख युक्त पाषाण हैं ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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