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________________ १३८] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । लेख है कि इस राजाके पुरुषाओंने अर्थात् सदाशिव और वल्लालने बौद्धोंको परास्त किया । तीसरा लेख सन् ११९८ का जैन मठमें सुद्धिपुरके सदाशिव राजाका है । (७) उलवी-ग्राम ता० हलियल । यहां बहुत प्राचीनकालके कुछ मंदिर हैं। (८) विदरकन्नी-या वेदकरनी-विलगीसे सिद्धापुरको जाते हुए सड़कपर एक छोटा जैन मंदिर है जिसमें बहुतसे पाषाण नक्काशीके हैं। (९) विलगी-सिद्धपुरसे पश्चिम पांच मील । यहां महत्वकी वस्तु श्री पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर है। इसका जीर्णोद्धार सन् १६५० में राझप्पराजाके पुत्र जैनकुमार घंटेवादियाने कराया था । इसमें श्री नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और श्री महावीरजीकी मूर्तियें स्थापित की । यह मंदिर बहुत बढ़िया नक्काशीका है। तथा द्राविडी ढंगका है। जैसा पश्चिम मैसूरके हलेविड या द्वार समुद्र में होयसाल वल्लाल मंदिर विष्णुका है । दो शिलालेखोंमें वर्णन है कि नौ ग्राम तथा चावल दान किये गए। विलगीका प्राचीन नाम श्वेतपुर था । ऐसा कहा जाता है कि इसको जैन राजा नरसिंहके पुत्रने स्थापित किया था जो विलगीसे पूर्व ४ मील होसूरमें १५९३ के अनुमान राज्य करता था। कहते हैं श्री पार्श्वनाथके मंदिरको नगर वसानेवाले जैन राजाने बनाया था । श्री पार्श्वनाथ मंदिरके द्वारके भीतर दो बड़े शिलालेख ६ फुट शाका १५१० व ६॥ फुट शाका १५५० के हैं । (१०) हादवल्ली-भटकलसे उत्तर पूर्व ११ मील । यहां
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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