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________________ १२२] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । एक रह गया है। विजयनगरके राजाओंने इसकी उन्नति की थी। तथा कृष्णराजा (सन् १९०९-१५२९) ने यहां और हुबलीमें किला बनवाया । इस छव्वीका वर्णन सबसे पहले यहांसे उत्तर ४ मील आदरगुंचीके एक पाषाणमें आया है जिसमें लेख सन् ९७१ का है। जिसमें एक दानका वर्णन आया है जो छन्वी (३०) के अधिपति पांचलने किया था । ( Ind. Antiquary XII 255.) (१३) आदरगुंची-छव्वीसे उत्तर ४ मील । यहां एक बड़ी जैन मूर्ति व शिलालेख है । __(१४) हुबली-यहां एक जीर्ण जैन मंदिर है । जिसका फोटो Dharwar and Mysore architeture नामकी पुस्तकमें दिया है। (१५) सोरातुर-सिरहट्टीसे पूर्व उत्तर २ मील व मूलगुंडसे पूर्वदक्षिण ६ मील । यहां एक जैन मंदिरमें शिलालेख शाका ९९३ का है। ( Ind. Ant. XII a56). (१६) अरतलू-ता० वंकापुर-शिग्गांवके पश्चिम ६ मील । यहां १ जैन मंदिर है जो सन् ११२०के अनुमान बना था। ___ (१७) कल्लुकेरी-हांगलसे दक्षिण पूर्व १२ मील व तिलिवल्लीसे पूर्व ६ मील । यहां वासरेश्वरका मंदिर जैन ढंगका है । भीतोंपर मूर्तियां व शिल्प दर्शनीय है। (१८) यलवत्ती-नीदसिंगीसे दक्षिण १॥ मील। यहां पुराना जैन मंदिर है। भीतपर नकाशी हैं। एक मूर्ति विना बनी पड़ी है।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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