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________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२१ यह आसार्य नीति और धर्मशास्त्रमें बड़ा विद्वान था इसने नगरके व्यापारियोंकी सम्मतिसे १००० पानके वृक्षोंके खेतको सेनवंशके आचार्य कनकसेनकी सेवामें मंदिरोंके लिये दान किया। यह कनकसेन मीरव व वीरसेनका शिष्य था । यह वीरसेनजी पूज्यपाद कुमारसेनाचार्यके संघके साधुओंके गुरु थे। __ (६) नारैगल नगर-ता० ऐन । धाडवाडसे पूर्व ५५ मील । यह प्राचीन नगर है। मंदिर हैं व लेख १२ से १३ शताब्दीके हैं। (७) रत्तीहल्ली-ग्राम ता० कोड-यहांसे दक्षिण पूर्व १० मील ३६ खंभोंका मंदिर जखनाचार्यके ढंगका है। यहां ७ शिलालेख ११७४से १५५• तकके हैं, एक ध्वंश किला है। (८) रोननगर-धाड़वाड़से ५५ मील । यहां सात काले पाषाणके मंदिर हैं एकमें लेख ११८०के अनुमानका है। (९) शिग्गांव-ता० बंकापुर-यहां वासप्पा और कलमेश्वरके मंदिरोंमें १. शिलालेख हैं। (१०) अमिनभवी-धाडवाइसे उत्तर पूर्व ७मील। यहां ग्रामके उत्तरमें एक प्राचीन जैन मंदिर श्री नेमिनाथनीका बहुत बड़ा है। ४० गज लम्वा है, बहुतसे खंभे हैं। यहां तीन शिलालेख हैं। (११) हेव्बल्ली-धाड़वाड़के उत्तर ८ मील पूर्व-व्यारहट्टीसे ५ मील । यहां गांवके दक्षिण संभूलिंगका मंदिर है जिनमें जैन रीतिका शिल्प है । यह करीब ५७ फुट लम्बा है। (१२) चब्बी-हुबलीसे दक्षिण ८ मील-इसका प्राचीन नाम सोभनपुर था । यह प्राचीनकालमें जैन राजाकी राज्यधानी था। उस समय यहां सात जैन मंदिर थे जिनमें अब प्रामके मध्यमें
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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