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________________ १२० ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । (५) मूलगुंड नगर - गडगसे दक्षिण पश्चिम १२ मील । यहां ४ जैन मंदिर हैं। जिनमें ३ के नाम हैं- श्री चन्द्रप्रभु श्री पार्श्वनाथ, हीरी मंदिर । हीरी मंदिरमें दो शिलालेख हैं । एक सन् १२७५ का है । चौथे जैन मंदिरमें दो लेख सन् ९०२ और १०५३ के हैं । यह स्थान वेन्तुरसे दक्षिण पूर्व ४ मील है । गड़गका पुराना नाम क्रतुक है । चंद्रनाथके जैन मंदिरकी भीतें बाहरसे देखनेयोग्य हैं । यहां ७ शिलालेख हैं (१) चंद्रनाथ मंदिर में शाका ११९७ का । इसमें मूलगुंडके राजा मदरसाकी स्त्री भामत्तीकी मृत्युका वर्णन है । (२) इसी मंदिरके एक खंभे पर शाका १५९७ का है । (३) यहीं शाका ८२५का है । राष्ट्रकूट राजा कृष्णवल्लभके राज्यमें चंद्रार्य वैश्यने मूलगुंडमें एक जैन मंदिर बनवाया व भूमि दान की । इस मंदिरके पीछे एक बहुत बडी पहाड़ी चट्टान है, उसपर २५ फुट लम्बी एक मूर्ति पूर्ण कोरी गई है व लेख है जो कुछ मिट गया है । ( ४ ) वहीं एक पाषाण है उसमें छोटा लेख है । (५) एक जैन मंदिरकी भीत पर शाका ८२४का लेख है । (६) दूसरे जैन मंदिर में शाका ९७५ का है । (७) हीरी मंदिरमें शाका ११९७का है । मूलगुंडमें एक शिलालेख पर यह वर्णन है श्री चंद्रप्रभुको नमस्कार हो - चीकारी जिसने जैन मंदिर बनवाया था उसके पुत्र नागार्ग्यके छोटे भ्राता आसाने दान किया ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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