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________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२३ ___ (१९) कर गुद्री कोप-हांगलसे ५ मील । नारायणके मंदिरके दक्षिण या ग्रामके पश्चिम एक संरक्षित कादम्ब वंशावलीको पूर्ण दिखानेवाला शिलालेख १०३० का है । __ (२०) मुत्तूर-तडससे पश्चिम ३ मील । यहां जैन ढंगका मंदिर है। ___(२१) भैरवगढ़-हैतुरसे उत्तर, तुङ्गभद्रा नदीपर । रत्तीहल्लीसे १० मील दक्षिण पूर्व इसका प्राचीन नाम सिंधुनगर था । यह सिंधुवल्लाल वंशकी राज्यधानी था जिनका कुलदेवता भैरव था ( नोट-यहां जैनस्मारक मिल सक्ते हैं ) (२२) लक्ष्यमेश्वर-शिग्गांवसे उत्तर पूर्व २१ मील व करजगीसे उत्तर २० मील, इसका प्राचीन नाम पुलिकेरी है । यहां बडे महत्वके मंदिरोंका समूह है । जिनमें मुख्य है। (१) संखवस्ती-यह प्राचीन जैन मंदिर है । नगरक मध्यमें ३६ खंभोंसे छत थंभी हुई है । (२) हलवस्ती मह छोटा जैन मंदिर है । संख वस्तीमें ६ लेख हैं। ( Ind. Ant. VII. P. IoT III ). इन लेखोंका कुछ भाव यह है । __ लक्ष्मेश्वरके संखवस्तीके लेखोंका वर्णन (१) एक पाषाण ५ फुट ऊंचा २ फुट चौड़ा है इसमें पुरानी कनड़ीमें ८२ लाइन है। दशवीं शताब्दीका लेख है। इसमें तीन भिन्न २ लेख हैं।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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