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________________ वीजापुर जिला। [ १०६ आठ खड़े आसन जैन मूर्तियां हैं, हरएक पांच फुट ऊंची है। इनमेंसे चारपर सात फणका सर्पमंडप है। दूसरे चारपर दो सर्पफण फैलाये हैं । हरएक चरणके पास सर्प है। (सं० नोट-ये सब श्री पार्श्वनाथकी अपूर्व मूर्तियां हैं) इनमें कुछ खंडित हैं । मंदिर बिजलीसे नष्ट हो गया है। नोट-शायद यह मंदिर तब बना था जब ११वीं शताब्दीके करीब यहां दिगम्बर जैन बहुत रहते थे। (१४) हेब्बल-वागेवाड़ीसे दक्षिण १२ मील। ग्रामसे ३०० गज जाकर वागेवाड़ो नीदगुडी सडक है । झाड़ियोंके पीछे एक ऊंची भीतसे छिपा हुआ एक सुन्दर जैन मंदिर है। जिसमें मंडप, वेदी व कमरा है । कमरेमें २२ खंभे हैं व ४ पिलैस्तर हैं चार बीचके खंभे ८ फुट ऊंचे हैं दूसरे ६ फुट ऊंचे हैं। भीतरकी वेदीका मंदिर २५ फुट चौकोर है। इसको भी लिंगमंदिर कर लिया गया है। (१५) जैनपुर-बागलकोटसे उत्तर पश्चिम २५ मील । यह बीजापुर, बागलकोटकी सडक पर कृष्ण नदीके वाएं तटपर है। यहां पहले बैन लोग रहते थे इसीलिये जैनपुर प्रसिद्ध है। (१६) करडीग्राम-हुनगुंडसे उत्तर पूर्व १० मील । यहां तीन मंदिर व तीन पुराने शिलालेख हैं। ये मंदिर मूलमें जैनियोंके दिखते हैं । एक लेख ११५३ व एक १५५३का है । यह दूसरा लेख ग्यारहवें विजयनगर राजा सदाशिवरायका है (१९४२१९७३)
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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