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________________ [ ६३ वीजापुर जिला। इसमें इस भांति राजाओंका वर्णन है जयसिंह प्रथम या जयसिंह वल्लभ रणराग पुलिकेशी प्रथम कीर्तिबर्मा प्रथम मंगलीशा या मंगलीश्वर पुलिकेशी द्वि० या सत्त्याश्रय इस लेखका अभिप्राय यह है कि शाका ५०७में पुलिकेशीके राज्यमें किसी रविकीर्तिने यह श्री जिनेन्द्रका मंदिर पाषाणका बनवाया । इस लेखसे इधरका बहुतसा इतिहास मालूम होता है । इस लेखमें बहुत महत्वकी बात यह है कि इसमें कदम्ब और कलचूरी राजाओंका, वनवासी नगरीका, कोकणके मौर्योंका, आप्पायिक-गोविन्दका वर्णन है जो शायद राष्ट्रकूटवंशका था । १२ वीं लाइनमें इधरके देशको महारापतु वातापिपुरी या वातापिनगरी (वर्तमान बदामी) के नामसे लिखा है नकल लेख मेघुती मंदिर । (१) जयति भगवान् जिनेन्द्रो....ज....र (?, क्ष) ण जन्मनो यस्य ज्ञान समुद्रांतर्गत मखिलञ्जगदन्तरी पमिव ॥ तदनु चिरमपरिचेयश्चलुक्य कुलविपुल जलनिधिर्जयति ॥ एथिवी मौली (लि) ललामो-यप्रभव-पुरुषरत्नानाम् ॥ शूरे विदुषि च विभजन्दानाम्मानश्च युगपदेकत्र (२) अविहित याथातथ्यो जयति च सत्याश्रयस्सुचिरम् ॥
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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