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________________ कलिंग देश का इतिहास : nwwww अन्तर न होने से यह बात सत्य होगी ऐसी सम्भावना हो सक्ती. है। - दूसरी बात यह है कि श्रेणिक राजाने जिस मन्दिर को बनवाया होगा वह दूसरे मन्दिर को देखकर हो बनवाया होगा। इससे सर्वथा सिद्ध होता है कि श्रेणिक राजा के समय से भी प्राचीन मन्दिर उपस्थित थे । श्रेणिक राजा भगवान महावीर के समय में हुआ था और वह भगवान का पूर्ण भक्त भी था । यदि जैनमूर्ति बनाना जिन धर्म के सिद्धान्तों के विरुद्ध होता तो अवश्य अन्यान्य पाखण्ड मतों के साथ मूर्ति पूजाका भी कहीं खंडनात्मक विवरण होता पर ऐसा किसी भी शास्त्र में नहीं है। अतएव मूर्ति पूजा भगवान को भी मान्यथी ऐसा मानना पड़ेगा। कुमार पर्वत की गुफाओं में चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ खारवेल के समय के पहले की अबतक भी विद्यमान हैं । मूर्ति मानना या मूर्ति न मानना यह दूसरी बात है पर सत्य का खून करना यह सर्वथा अन्याय है। सज्जनो ! जैन मन्दिर और मूर्तियों ने इतिहास पर खूब प्रकाश डाला है और इन से जैन धर्म का ही नहीं पर भारत का गौरव बढ़ा है तथा इनसे यह भी प्रकट होता है कि पूर्व जमाने में जैन धर्म केवल भारत के कोने कोने में नहीं पर यूरोप और अमरीका तक किस प्रकार देदीप्यमान था क्या हमारे स्थातकवासी भाई इन बातों पर गम्भीरता पूर्वक विचार नहीं करेंगे कि
SR No.007289
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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