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प्रा० जै०
० इ० तीसरा भाग
जैन धर्म में मूर्त्ति का मानना पूजना कितने प्राचीन समय से है और मूर्त्ति पूजना आत्मकल्यान के लिये कितना आवश्यक निमित कारण है प्राचीन इतिहास और जैन शास्त्रों के अध्ययन से यह ही सिद्ध होता है कि मूर्त्तिपूजा करना आत्मार्थियों का सब से पहला कर्तव्य है ।